गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हिंदुस्तान को देख कर के जितना क्रोध और गुस्सा मुझे आता है, शायद ही किसी को आता हो ,जी चाहता है कि इन गोरे लोगों को मार मार के बाहर निकाल दू। इन्होंने मेरे देश पर कब्जा किया हुआ है और यहां से लूट लूट कर इंग्लैंड ले जा रहे हैं ।जब तक मैं इन्हे हिंदुस्तान से नहीं निकाल दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूंगा। यह अल्फाज है उन स्वतंत्र सेनानियों के जिन्होंने हंसते-हंसते आजादी के लिए फांसी के फंदे चूम लिए। आजादी के मतवाले (40) नवाब मुस्तफा खाँ शेफ्ता दिल्ली वाले पिता का नाम नवाब मुर्तजा खाँ था। 1857 के विद्रोह के पहले से उनका निवास दिल्ली में था। देश और देशवासियों के पक्के हितेषी थे। शेफ्ता बादशाह के लिए पत्र लेखन का काम करते थे । इसलिए विद्रोह के बाद कैद कर लिए गए। उन्हें 7 वर्ष की कैद हुई। नवाब सिद्दीक हसन खान साहब ,पति शाहजहां बेगम साहिबा महारानी भोपाल ने बहुत प्रयत्न किया और उनको कैद से छुड़ाया। सन 1968 में 63 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई और सन 1968 में महबूब इलाही की खानकाँ निजामुद्दीन में दफन हुए। मुफ्ती सदरूद्दीन आजुर्दा पिता का नाम मौलवी लुत्फुल्लाह कश्म
मैंने क्या पाया है दुनिया से कभी सोचा नहीं ।सोचता ये हूं कि मैं दुनिया को क्या दे जाऊंगा।। एस ए बेताब संपादक "बेताब समाचार एक्सप्रेस" हिंदी मासिक पत्रिका एवं यू टयूब चैनल