मैं श्रीनगर से के सबसे बड़े आर्मी कैंप के पास रहती थी। हर सुबह जब भी घर से स्कूल के निकलती तो मुझे मिलने वाला पहला इंसान कोई फौजी होता। फौजी जो कि मेरे सिर पर हाथ फेरकर सवाल करता, 'गुड़िया, स्कूल जा रही है क्या?' हर सुबह का रूटीन यही था। लेकिन बचपन का वक्त बीतने के साथ यह सोच भी बदली। घाटी की कहानियों के बीच 'गुड़िया' शब्द के संबोधन भी अपने मायने बदल चुके थे। डर और कश्मीर के मुश्किल हालातों में मैं अपनी मां को खुद के साथ स्कूल की बस तक चलने को कहती और ये हिदायत भी देती कि वापसी के वक्त वह मुझे यहां लेने जरूर आ जाए।' एक कश्मीरी लड़की के तौर पर अपने बचपन को बयां करते वक्त इरफाह बट ने कुछ ऐसे वाकयों का जिक्र करना शुरू किया। मुंबई में हुई बातचीत के बीच इरफाह ने उस 'वक्त' के बारे में बताते हुए कहा 'कश्मीर के श्रीनगर की मिलिट्री कैन्टोन्मेंट के बाहर सेना का एक बंकर था, जिसमें एक बड़ा सा शीशा लगा होता था। इस शीशे में सेना के जवान उनके पीछे से आ रहे किसी शख्स को एकदम साफ तरीके से देख सकते थे। बात करते हुए थोड़ी सी असहज होते इरफाह कहती हैं कि जब भी वह स्कूल की
मैंने क्या पाया है दुनिया से कभी सोचा नहीं ।सोचता ये हूं कि मैं दुनिया को क्या दे जाऊंगा।। एस ए बेताब संपादक "बेताब समाचार एक्सप्रेस" हिंदी मासिक पत्रिका एवं यू टयूब चैनल