जो खोया है सियासत में, वो मिलेगा भी सियासत से ही एक पैसा भी खो जाता है अगर किसी का तो वह ढूंढता है उसे, वापस पाना चाहता है, उसे एहसास रहता है अपने एक पैसे के खो जाने का.... और हमने तो अपना सब कुछ खो दिया, मगर कोई तलाश कोई प्रयास ही नहीं। हमने अपना राजपाट खो दिया, शान-व-शौकत और सम्मान खो दिया.......भाई-भाई से बिछड़ गया....... हमारे लिए अपना ही देश बेगाना हो गया। क्या कुछ नहीं खोया हमने? क्या आज़ादी इसलिए पाई थी हमने अपना खून पसीना बहाकर सब कुछ इस तरह खो देंगे? फिर भी हमें एहसास नहीं है। हम फिर से कुछ भी पाना नहीं चाहते। शायद हमने हालात से समझोता कर लिया है। ऐसा क्यों? जिसका एक पैसा भी खो जाता है, अगर वह उसे पाना चाहता है, उसे उसके खो जाने का एहसास बाकी रहता है तो फिर हमें अपना सब कुछ खो देने का एहसास क्यों नहीं? हमारे मन व मस्तिष्क में फिर से अपना खोया हुआ सम्मान पाने का संघर्ष क्यों नहीं? स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी हमने, देश को गुलामी की जं़ज़ीरों से छुटकारा दिलाया हमने, अंग्रेज़ों को देश छोड़कर चले जाने पर मजबूर किया हमने, स्वतंत्रता के गीत गाए हमने, तराने लिखे हमने, पत्रकारिता द्वारा
मैंने क्या पाया है दुनिया से कभी सोचा नहीं ।सोचता ये हूं कि मैं दुनिया को क्या दे जाऊंगा।। एस ए बेताब संपादक "बेताब समाचार एक्सप्रेस" हिंदी मासिक पत्रिका एवं यू टयूब चैनल