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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जो खोया है सियासत में, वो मिलेगा भी सियासत से ही

  जो खोया है सियासत में, वो मिलेगा भी सियासत से ही एक पैसा भी खो जाता है अगर किसी का तो वह ढूंढता है उसे, वापस पाना चाहता है, उसे एहसास रहता है अपने एक पैसे के खो जाने का.... और हमने तो अपना सब कुछ खो दिया, मगर कोई तलाश कोई प्रयास ही नहीं। हमने अपना राजपाट खो दिया, शान-व-शौकत और सम्मान खो दिया.......भाई-भाई से बिछड़ गया....... हमारे लिए अपना ही देश बेगाना हो गया। क्या कुछ नहीं खोया हमने? क्या आज़ादी इसलिए पाई थी हमने अपना खून पसीना बहाकर सब कुछ इस तरह खो देंगे? फिर भी हमें एहसास नहीं है। हम फिर से कुछ भी पाना नहीं चाहते। शायद हमने हालात से समझोता कर लिया है। ऐसा क्यों? जिसका एक पैसा भी खो जाता है, अगर वह उसे पाना चाहता है, उसे उसके खो जाने का एहसास बाकी रहता है तो फिर हमें अपना सब कुछ खो देने का एहसास क्यों नहीं? हमारे मन व मस्तिष्क में फिर से अपना खोया हुआ सम्मान पाने का संघर्ष क्यों नहीं? स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी हमने, देश को गुलामी की जं़ज़ीरों से छुटकारा दिलाया हमने, अंग्रेज़ों को देश छोड़कर चले जाने पर मजबूर किया हमने, स्वतंत्रता के गीत गाए हमने, तराने लिखे हमने, पत्रकारिता द्वारा

मुस्लिम समाज की अपनी पार्टी बनाने के प्रयोग

  देश के मुसलमानों द्वारा अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने के अब तक एक दर्जन से अधिक प्रयोग किए गए. जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के विभिन्न राज्यों में किए गए ये प्रयोग संख्या बढ़ाने के लिहाज से सफल तो दिखते हैं, परंतु वे इतने सीमित हैं कि उनकी बुनियाद पर तेलंगाना की स्थापना की घोषणा के बाद 29 राज्यों एवं 7 केंद्र शासित प्रदेशों में फैली कुल 13.4 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या के परिपेक्ष्य में उनका विश्‍लेषण बहुत कठिन हो जाता है. एक अनुमान के अनुसार, इन एक दर्जन मुस्लिम राजनीतिक पार्टियों द्वारा 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव से लेकर आज तक कमोबेश एक दर्जन से अधिक मुस्लिम प्रतिनिधि लोकसभा में भेजे जा चुके हैं. इसी प्रकार विभिन्न मुस्लिम राजनीतिक पार्टियों के 200 प्रतिनिधि विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं एवं विधान परिषदों में पहुंच चुके हैं. इनमें इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के सदस्यों की संख्या 75 प्रतिशत से ज़्यादा है. मुस्लिम लीग के इन सदस्यों का संबंध केरल, तमिलनाडु एवं पश्‍चिम बंगाल जैसे राज्यों की विधानसभाओं से रहा है. अन्य मुस्लिम राजनीतिक पार्टियों के लोग केवल आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं असम क

अपने दुश्मन को पहचानो!

  दुश्मन को पहचानो वैसे तो ज्यादातर लोग समझदार हैं लेकिन अफसोस होता है कि वह समझदार लोग भी भीड़ तंत्र में बदल जाते हैं। जबकि लोकतंत्र एक ऐसा अधिकार देता है जिसके जरिए आपको अपने होशो हवास में अपना नुमाइंदा चुनने का मौका मिलता है। उस शानदार अवसर को ज्यादातर लोग किसी ना किसी भावना में बहकर गंवा देते हैं और बाद में फिर 5 साल तक पछताते रहते हैं। एक पुरानी कहावत है अब पछताए क्या होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत  ऐसी ही ex':eveex ex is AZ ex ex ex AZ GTE Creey yकुछ मिसाल हम लोगों की भी  है हमें अपने दुश्मन को पहचानना होगा। क्या किसी धर्म का आदमी आपका दुश्मन हो सकता है या किसी जाति का आदमी आपका दुश्मन हो सकता है? हमने तो ऐसा देखा है कि आपके ही धर्म और आपकी ही जाति का व्यक्ति भी आपका दुश्मन हो सकता है। कई बार तो परिवार का व्यक्ति भी दुश्मन हो सकता है और कई बार आपके साथ काम करने वाला भी आप से दुश्मनी निभा सकता है, तो अपने दुश्मन को पहचानो। किसी की दाढ़ी किसी की टोपी किसी की पगड़ी किसी की वेशभूषा या किसी के गंदे कपड़ों को देखकर आप अपने दोस्त या दुश्मन का अंदाजा नहीं लगा सकते, बल्कि आपको यह तय कर