सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गरीबी से छुटकारा कैसे पाएं !

         लेेेखक- एस ए बेताब  गरीबी से छुटकारा कैसे पाएं ! https://youtu.be/LJ7UHhG-FWo भारत में गरीबी से मुक्ति कैसे संभव है ? सबसे पहले तो आप जिस स्थान पर रहते हैं वहां के लोगों की जीवन शैली, उनकी आदतें ,उनके विचार ,उनकी इच्छाएं, उन्हें अच्छी तरह पहचानिए । फिर आप तय कीजिए कि आप इन सब लोगों से अलग है। आपके विचार यूनिक होने चाहिए। आप अपने अंदर बदलाव लाना चाहते हैं । अपने आप को बदलिए । अपने आप को स्वस्थ और मजबूत इंसान बनाइए । 1 :- पहले यह तय करें कि आप गरीब नहीं हैं । 2 :- गरीबी को दूर भगाना है । 3 :- अपना लक्ष्य बनाएं । 4 :- सही दिशा में पूरी मेहनत से काम करें। 5:- धन की कमी का रोना ना रोए। 6 :-धन प्राप्ति की चेतना विकसित करें । 7 :- अपने जीवन की प्रतिदिन की दिनचर्या बनाएं अपने समय को नष्ट ना करें। आप किस क्षेत्र से आते हैं वहां की भौगोलिक स्थिति क्या है यह भी ध्यान में रखना जरूरी है । आप इन सब चीजों का पालन करें। आप की गरीबी दूर हो जाएगी और आपकी क्वालिफिकेशन क्या है ? और आपका मानसिक ज्ञान क्या है ? आप क्या करना चाहते हैं ? एक बिजनेसमैन बनना चाहते हैं या सर्विसमैन बनना चाहते हैं यह

डर के साए में जिंदगी!

डर के साए में जिंदगी!  डर तो डर है,जो डर गया समझो मर गया ! फिल्म शोले का यह मशहूर डायलॉग काफी कुछ कहता है।जिंदगी की बुनियाद डर और खौफ के साए में हो तो उस पर बनने वाली इमारत एक डरावनी हवेली की तरह बन जाती है। सत्य अहिंसा और समानता जीवन से कब दूर चली जाती है इसका पता ही नहीं चलता है। पहले होता है कुछ- कुछ और फिर हो जाता है सब कुछ। जुल्म,अन्याय और अत्याचार के खिलाफ उठने वाली आवाजें कमजोर पड़ जाती हैं।जिन  युवाओ ने सोचा था कि पढ़ लिखकर रूढ़िवादिता और भटकाववाद को समाप्त करेंगे, वह कब भटकाव की भट्टी में अपने आप को झोंक देते है इसका पता ही नहीं चलता और जब इसका पता जब  चलता है तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। पहले जुल्म, अन्याय और अत्याचार के मामले में इसलिए समझौता कर लेते हैं कि वह उनके परिवार के सदस्य है। फिर इसलिए समझौता कर लेते हैं कि वह उनकी जाति के है । फिर इसलिए झुक जाते हैं कि वह उनके संप्रदाय के है। और हद तो तब हो जाती है जब वह अन्याय और अत्याचार की अपनी अलग परिभाषा गढ़ लेते हैं । यह सब इतनी आसानी से हो जाता है कि वह जब समझते हैं तो सामने इतने शक्तिशाली लोग नजर आते हैं कि उनसे

"जिसकी लाठी उसकी भैंस"

"जिसकी लाठी उसकी भैंस"  यह तो पहले से होताआया है  बहुत इंतजार के बाद बाबरी मस्जिद का फैसला आ गया। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना ही दिया। सुप्रीम कोर्ट, सुप्रीम है अब फैसला जो भी आए आप उससे संतुष्ट हो या असंतुष्ट हो इसके बाद भारत में कोई दूसरी अदालत नहीं । सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानना होगा ।जब फैसला नहीं आया था तो कुछ लोग जो यह कहते थे कि वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं मानेंगे । फैसला आने से पूर्व  कुछ लोग एक माहौल तैयार करने में लग गए । यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला जो भी आए हम सबको सद्भाव बनाए रखना है । प्यार मोहब्बत से रहना है ,किसी तरह का कोई विरोध प्रदर्शन नहीं करना है ।जगह-जगह शांति मीटिंग  होने लगी और जो शांति के लिए प्रशासन के कहने पर काम करते हैं वह सब लोग उसमें लग गए। उत्तर प्रदेश में सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर दी गई। दंगा फसाद रोकने के लिए पुलिस प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के अन्य राज्यों को भी हाई अलर्ट पर रखा गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद बिल्कुल शांति है ,बराबर शांति बनी हुई है, जैसी धारा 370 को कश्मीर में हटाए जाने के बा

हुए जो मर के रुसवा हुए क्यों ना ग़रके दरिया । ना कभी जनाजा उठता न कहीं मजार होता

गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हिंदुस्तान को देख कर के जितना क्रोध और गुस्सा मुझे आता है, शायद ही किसी को आता हो ,जी चाहता है कि इन गोरे लोगों को मार मार के बाहर निकाल दू। इन्होंने मेरे देश पर कब्जा किया हुआ है और यहां से लूट लूट कर इंग्लैंड ले जा रहे हैं ।जब तक मैं इन्हे हिंदुस्तान से नहीं निकाल दूंगा तब तक चैन से नहीं बैठूंगा। यह अल्फाज है उन स्वतंत्र सेनानियों के जिन्होंने हंसते-हंसते आजादी के लिए  फांसी के फंदे चूम लिए। आजादी के मतवाले (40) नवाब मुस्तफा खाँ शेफ्ता दिल्ली वाले पिता का नाम नवाब मुर्तजा खाँ था।  1857 के विद्रोह के पहले से उनका निवास दिल्ली में था। देश और देशवासियों के पक्के हितेषी थे। शेफ्ता बादशाह के लिए पत्र लेखन का काम करते थे । इसलिए विद्रोह के बाद कैद कर लिए गए। उन्हें 7 वर्ष की कैद हुई। नवाब सिद्दीक हसन खान साहब ,पति शाहजहां बेगम साहिबा महारानी भोपाल ने बहुत प्रयत्न किया और उनको कैद से छुड़ाया। सन 1968 में 63 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई और सन 1968 में महबूब इलाही की खानकाँ निजामुद्दीन में दफन हुए।  मुफ्ती सदरूद्दीन आजुर्दा पिता का नाम मौलवी लुत्फुल्लाह कश्म