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जनवरी, 2024 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चुनाव आयोग जी बैलेट-पेपर को जिन्दा करो या बहुजन हसरत पार्टी कि मान्यता रद्द करो

सेवा मे:---*   *1..आदरणीय महामहिम राष्ट्रपति महोदया साहिबा जी, भारत सरकार, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली-110004* *2..माननीय केन्द्रीय चुनाव/निर्वाचन आयोग, निर्वाचन सदन, अशोक रोड, नई दिल्ली-110001* *माननीय महोदय/महोदया जी* *विषय:--दिनाँक 25/11/2020 से 28/5/2023 और अब 28/11/2023 तक 1000-1200 के इर्द-गिर्द रजिस्टर्ड-AD भेजकर EVM हटाकर पारदर्शी ''बैलेट-पेपर'' से चुनाव कराया जाय तब फिर ऐसी परिस्थित मे न्याय-प्रिय ''बैलेट-पेपर'' से चुनाव न कराये जाने पर बहुजन हसरत पार्टी BHP कि अपनी खुद कि मान्यता ही रद्द कर दी जाय ऐसी माँग को पिछले करीब 50-महिने के इर्द-गिर्द से बहुजन हसरत पार्टी BHP ने 17/12/2022--22/12/2022--31/12/2022--02/01/2023--03/03/2023--06/03/2023--09/03/2023--25/03/2023--28/03/2023 से कहीं ज्यादा 28/5/19 से लेकर 28/11/23 तक लिखित लिखा-पढ़ी करके निवेदन पे निवेदन करती चली आ रही है परन्तु अभी तक न जाने क्यों बहुजन हसरत पार्टी BHP कि बात स्वीकार नही कि जा रही है परन्तु इस अपील कम सूचना/नोटिस के मिलते ही बहुजन हसरत पार्टी BHP कि अपनी मान्यता अब तो तत्काल रद्द

पीलीभीत पालिकाध्यक्ष डॉ आस्था ने मकर सक्रांति पर्व पर खिचड़ी भोज का आयोजन किया*

 **बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए पीलीभीत से शाहिद खान की रिपोर्ट* राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियों में जुटने का आवाहन *आरएसएस विभाग प्रचारक ने किया भोज का शुभारंभ* खिचड़ी भोज में शामिल हुए आरएसएस पदाधिकारी, भाजपा नेता और सैकड़ों श्रद्धालु पीलीभीत। मकर संक्रांति पर्व के उपलक्ष में अध्यक्ष नगर पालिका परिषद की ओर राम खिचड़ी सहभोज का आयोजन किया गया।जिसमें सैकड़ो श्रद्धालुओं, पालिका कर्मियों, भाजपा नेताओं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पदाधिकारियों ने भोजन प्रसाद ग्रहण किया। नगर के पीलीभीत बैंक्विट हॉल में राम खिचड़ी सहभोज का आयोजन किया गया। राम खिचड़ी सहभोज का आरंभ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग प्रचारक धर्मेंद्र भारत ने किया। इस अवसर पर विभाग प्रचारक ने मकर संक्रांति पर्व की महिमा बताई।  इसके अलावा विभाग प्रचारक ने 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा आयोजन के संबंध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि नगर के सभी मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। नगर के सभी मंदिरों में सुंदरकांड का पाठ सत्संग कीर्तन आदि आयोजित करके प्रभु श्री राम की पूजा अर्चना की जाएगी। घरों में दीप

*पसमांदा मुसलमानों का भला करने वाले नरेंद्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री

* बेताब समाचार एक्सप्रेस के लिए पीलीभीत से शाहिद खान की रिपोर्ट* तीसरी बार मोदी जी को प्रधानमंन्त्री बनाने को लेकर जुटे पसमांदा मुसलमान *मोदी सरकार में पसमांदा मुसलमानों को अपनी अहमियत का पता चला : जावेद मलिक* डबल इंजन सरकार की नीतियों का सीधा लाभ पसमांदा मुस्लिम समाज तक सीधे पहुंच रहा नौगावा (अमरोहा ) आज़ादी के बाद से अभी तक किसी भी प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों की सुध नहीं ली। नरेंद्र मोदी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने पसमांदा मुसलमानों के दर्द को समझा। राजनितिक, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े हुए पसमांदा मुसलमानों को सभी राजनितिक दलों ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। पसमांदा मुसलमानों को उनके हाल पर छोड़ दिया। भाजपा ने ही सच्चे अर्थों में पसमांदा मुसलमानों की हितैषी साबित हुई है। उक्त बातें अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के क्षेत्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने कहीं। वह नौगांवा सादात जनपद अमरोहा में आयोजित पसमांदा मुस्लिम सम्मेलन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। जावेद मलिक ने रविवार को महेशवरी बैंकट हॉल पर सैंकड़ो

*6 दिसम्बर की बात 7 दिसम्बर को*

*-----6--------6----------6--------6-----* 6 दिसम्बर 1992 हिन्दुस्तान की तारीख का वो सियाह दिन है जब इस मुल्क में इस अदलिया और कवानीन के सामने ही इस मुल्क की जम्हूरियत का कत्ल किया गया तारीख ने देखा कि इक्तिदार पर बैठे इंसाफ-ओ-अमन की दुहाई देने वालों ने किस तरह बाबरी मस्जिद को शहीद किया और अदालत में बैठे इन्साफ के अलमबरदार उसकी शहादत का तमाशा देखते रहे | लेकिन इस दिन मुसलमानों में एक अजब जज्बा-ए-दीन बेदार हुआ है , मुसलमान  6 दिसम्बर को यौम-ए-सियाह (काला दिन)के नाम से मनाएंगे और आह-ओ-जारी करेंगे। मैं तस्लीम करता हूँ कि बाबरी मस्जिद की शहादत और उसकी अजमत का दर्द जो हमारे दिलों में उठता है वो यकीनन बेहतर है लेकिन सवाल ये है कि ये दर्द ये आहो-फुगाँ ये गम ये तदबीरें सिर्फ 6 दिसम्बर को ही क्यूँ ? कभी सोचियेगा कि इन मसाजिदों की अजमत और गम-ए-हकीकी भी हमारे दिलों में हैं की नहीं , ये कैसा दर्द है हमारे दिलों में कि एक मस्जिद की शहादत पर हमें तकलीफ होती है हम उसकी शहादत पर जारो-कत्तार आँसू बहाते है लेकिन जब इसी मस्जिद से सदा-ए-हक बुलंद होती है तो हम उसकी जानिब जाना भी पसंद नहीं करते क्या यही हमा

परिसीमन के नाम पर खत्म की जा रही मुस्लिम राजनीतिक भागीदारी

 परिसीमन के मुद्दे की बात करें तो हमें देखने को मिलता है कि अधिकतर लोगों को इसके बारे में मालूम ही नहीं है। आम जनता तो इस शब्द को पहली बार सुनती है। परिसीमन के बारें में कहा जाता कि पढ़े लिखों के बीच का मुद्दा है इसको आम लोग समझ ही नहीं सकते हैं मगर पिछले कुछ समय से मुस्लिम राजनीतिक भागीदारी और परिसीमन के बारे में व्यापक तौर पर बातचीत शुरू हो चुकी है।  परिसीमन के तहत आरक्षित सीटों के गणित को अगर आसान शब्दों में समझना हो तो आप ऐसे समझ सकते हैं कि संवैधानिक तौर पर दलित और आदिवासी समुदाय को मुख्य धारा में वापस लाने के लिए और उनकी राजनीतिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए कुछ लोकसभा और विधानसभा सीटों पर उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाता है। जिसमें केवल दलित और आदिवासी समुदाय के लोग ही चुनाव लड़ सकते हैं।  कुल लोकसभा सीटें: 543 दलित आरक्षित सीटें: 84 आदिवासी आरक्षित सीटें: 47 उत्तर प्रदेश विधान सभा की कुल सीटें: 403 दलित आरक्षित सीटें: 84 आदिवासी आरक्षित सीटें: 02 बिहार विधान सभा की कुल सीटें: 243 दलित आरक्षित सीटें: 38  आदिवासी आरक्षित सीटें: 02