भाई साहब ! आपके दिमाग में सनातन सनातन और सिर्फ सनातन की ही घंटी बजती रहती है क्योंकि आप उसे धर्म समझते हो जबकि वह किसी भी कोण से धर्म है ही नहीं वह सिर्फ और सिर्फ वर्ण आधारित सामाजिक व्यवस्था है जिसमें आप शूद्र यानी हर मानवीय अधिकारों से वंचित हो वह व्यवस्था धर्म कैसे हो सकती है जिसमें उसे मानने वाली बहुसंख्यक आबादी को नीच समझा जाता है उसको हर प्रकार के अधिकारों से वंचित करने के प्रावधानों को धार्मिक नियम बताए गए हों।
शूद्रों का मनोबल तोड़कर उनमें हीन-भावना भरने के लिए सैकड़ों कथित धार्मिक कहानियां लिखी गई हों।वे एकजुट न हो पाएं इसलिए उन्हें क्रमिक ऊंच-नीच के आधार पर हजारों जातियों में बांटा गया हो ?
वह धर्म कैसे हो सकता है जिसमें ऊपर के तीन वर्णों के लिए क्रमशः पाखंड अंधविश्वास फैलाकर,छीन झपट कर और हेराफेरी करके यानी बिना मेहनत किए आनंदपूर्वक सुखमय जीवन जीने की व्यवस्था हो और मेहनतकश बड़ी आबादी के ऊपर ही श्रम करके उत्पादन निर्माण की जिम्मेदारी दी गई हो और उन्हें शोषित पीड़ित दयनीय जीवन जीने को विवश किया गया हो और बिना ना-नुकुर किए उसी अमानवीय व्यवस्था को स्वीकार करके जीवन गुजारने को उनका धर्म बता दिया गया हो ?
यह शुद्ध रूप से कुछ शातिर दिमाग के लुटेरों का कमेरों के मेहनत की कमाई लूटने का षड्यंत्र है धर्म कतई नहीं।
और किसी धर्म का नाम नहीं बदला लेकिन जिसे आप सनातन कह रहे हो उसे षड्यंत्रकारियों ने समय के हिसाब से शोषण जारी रखने के लिए कभी सनातन धर्म कभी वैदिक धर्म कभी वर्ण धर्म कभी ब्राह्मण धर्म कहा।
जब तक सिर्फ शूद्रों के मेहनत की कमाई लूटने व उनका हर प्रकार से शोषण करना था तब तक उपरोक्त नाम चले किन्तु जब शूद्रों के हाथ में वोट की ताकत आने की संभावना दिखी तो उन्हें हिन्दू कहना शुरू कर दिया और फिर ब्राह्मण धर्म को हिंदू धर्म के नाम से प्रचारित करना शुरू किया ।
हिन्दू शब्द भी मुगलों की देन है जिसका अर्थ हारा हुआ ,कालाचोर ,नीच आदि ही होता है यानी एक तरह से शूद्र का पर्यायवाची शब्द ।
शूद्रों को ब्राह्मणों ने अपने प्रचार तंत्र के दम पर इसी नीचता पर गर्व भी करा दिया और जिन मुसलमानों ने हिन्दू शब्द दिया था उन्हें ही दुश्मन भी बना दिया और खुद को सुरक्षित कर लिया।
ब्राह्मणों का षड्यंत्र सफल हुआ वे अल्पसंख्यक होकर भी शूद्रों को हिंदू बनाकर भारत का शासक बने बैठे हैं पूर्ववत शूद्रों के सारे हक अधिकार हड़प रहे हैं और शूद्र हिन्दू बनकर मंदिरों में घंटा बजाने, कांवड़ ढोने, दुर्गा पूजा एवं रामलीला करने और मुसलमानों से लड़ने में व्यस्त हैं।
संक्षेप में कहें तो गुलामी का आनंद ले रहे हैं।
ब्राह्मण शूद्रों को हिंदू कहता जरूर है लेकिन मानता है शूद्र ही , वैसे भी शूद्र और हिन्दू शब्द के अर्थों में कुछ खास अंतर भी नहीं है।
इसीलिए ब्राह्मण खुद को हिंदू नहीं बल्कि ब्राह्मण बताता है।
क्योंकि उसे सब-कुछ पता है
उसी का तो सारा षड्यंत्र है।
ये तो शूद्र हैं जो हिन्दू बनने के लिए मरे जा रहे हैं जिन्हें अपने इतिहास का ही पता नहीं है उन्हें नहीं पता कि बहुत से महापुरुषों ने ब्राह्मणों के षड्यंत्रों को जाना और उसे जानकर अपने शूद्र समाज को ब्राह्मणी षड्यंत्रों को पहचानने और उस मकड़जाल से बाहर निकालने के लिए आजीवन संघर्ष किया ब्राह्मणों की विषमता वादी अंधश्रद्धा वादी सामाजिक व्यवस्था जिसे उन्होंने धर्म बताकर यहां के मूलनिवासियों पर थोप दिया था समता वादी महापुरुषों द्वारा अपने अपने समय में निरंतर उसके खिलाफ मानवता वादी और वैज्ञानिकता वादी विचारधारा को समाज में स्थापित करने के लिए संघर्ष किया।
गौतम बुद्ध से लेकर संत रविदास संत कबीर नारायणा गुरु ज्योतिबा फुले, साहू महाराज, बाबा साहेब डा. अम्बेडकर, रामास्वामी पेरियार, ललई सिंह यादव, बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा,डा. राम स्वरूप वर्मा, मा. कांशीराम तक लंबी परंपरा रही है ।
किंतु शूद्रों को ब्राह्मणों द्वारा धर्म बताकर थोपे गए काल्पनिक ग्रंथों की काल्पनिक कहानियां तो याद हैं उन कहानियों के काल्पनिक पात्रों राम कृष्ण हनुमान विभीषण, अर्जुन भीम आदि के बारे में पूरी जानकारी है किन्तु जो महापुरुष शूद्रों के उत्थान के लिए उनके सम्मान जनक और स्वाभिमान पूर्ण जिंदगी देने के लिए अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी उन महापुरुषों का नाम भी नहीं जानते इतना ही नहीं ब्राह्मणों के बहकावे में आकर उन्हें धर्म द्रोही कहकर अपशब्दों से भी नवाजते हैं।
जिस दिन शूद्र समाज यानी एससी एसटी ओबीसी के लोग ब्राह्मणों के धर्म नाम पर चल रहे षड्यंत्र के रहस्य को जानकर उनके लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महापुरुषों के विचारों को आत्मसात करके एकजुट होकर संघर्ष करेंगे झूठ की बुनियाद पर खड़ा ब्राह्मण शाही का यह महल भर भरा कर ढह जायेगा और शूद्र अपने भारत के स्वयं ही शासक होंगे और निश्चित ही भारत को महापुरुषों के सपनों का प्रबुद्ध व समृद्ध भारत बनायेंगे।
चन्द्र भान पाल
(बी एस एस)
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