मौलाना मज़हरुल हक़ का जन्म 24 दिसम्बर, 1869 को मौज़ाबहपुरा में हुआ, जो पटना जिला के थाना मनेर में स्थित है। वह अपने पिता स्वर्गीय शेख अहमदुल्लाह साहब के इकलौते पुत्र थे। उनके दादा शौकत अली खाँ डिप्टी कलक्टर थे। प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई। फिर बहपुरा स्कूल में नाम दर्ज कराया। 1886 में मैट्रिक पास कर के पटना कालेज में दाखिल हुए और उसके बाद 1887 में कैनिंग कालेज लखनऊ में दाख़िला लिया।उन्हें इंग्लैंड जाने का बहुत शौक था और इसलिए छिपते-छिपाते इंग्लैंड चले गए। ये अजीब संयोग है कि उनकी इस यात्रा में मोहनदास करमचंद गांधी भी यात्रा कर रहे थे। इस यात्रा में मज़हरुल हक और मोहन दास करमचंद गांधी की जान पहचान ही नहीं हुई, अपितु वे पक्के मित्र भी बन गये।
मौलाना मजहरुलहक तीन वर्ष इंग्लैंड में । जुलाई 1891 ई. मेंपटना में वकालत की। सन 1892 में मुन्सिफ भी हो गये।मौलाना मज़हरुलहक अपनी उच्च बुद्धि, अच्छे वक्ता होने और योग्यता के आधार पर 1909 में कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष चुन लिए गए। मज़हरुलहक् स्वयं भारतीय राजनीति में एक सूफी (अध्यात्मवादी) थे, जिन्होंने अपनी दौलत प्रतिष्ठा, ख्याति और परिवार से सम्बंध विच्छेद कर लिया था और वह अपने प्रतिभा के एक मात्र उद्देश्य एवं इरादे से पूर्ण रूप से बंध गये और वह उद्देश्य था 'देश की सेवा''। भारत को स्वतंत्र कराने और उसे एक आदर्श गणतंत्र बनाने के लिए उन्होंने पूर्ण संघर्ष करने से कभी इंकार नहीं किया। अपने जीवन के अंतिम दौर में बिल्कुल बदल गए थे। लम्बी दाढ़ी और साधारण वस्त्र धारण कर लिया था, और वह सूफ़ी हो गए थे।डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी “आत्म कथा' में लिखा है कि एक दिन इंजीनियरिंग विद्यालय के विद्यार्थी अपने प्रिंसिपल से लड़कर स्कूल से निकल आए और एक सभा के रूप में मौलाना के पास पहुँचे। उन्होंने मौलाना से कहा कि हमने स्कूल छोड़ दिया है, आप हमें कोई जगह दीजिए। मौलाना ने हिन्दु लड़कों के लिए अपने खर्च पर एक मकान बनवाया और उस जगह का नाम सदाक़त आश्रम रखा, जो तब से लेकर कांग्रेस कमेटी का दफ़्तर बना हुआ है |जब भारत में और राज्यों की तरह बिहार के हिन्दू-मुसलमानों के बीच भी तनाव प्रारम्भ हुआ, तो उस समय मौलाना ने छपरा जिले में बड़े बड़े नेताओं को एकत्र किया और उनसे आपस में मेलजोल और मित्रता करने की अपील की।
प्रस्तुति : एस ए बेताब
संपादक : बेताब समाचार एक्सप्रेस
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें