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सितंबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दुर्गेश की हत्या जातीय विद्वेष का नतीजा, दोषियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जाएदलित युवक दुर्गेश कुमार की हत्या के बाद किसान नेताओं ने मृतक के परिजनों से मुलाक़ात की

आजमगढ़ 10 सितम्बर 2025. दलित युवक दुर्गेश कुमार की हत्या के बाद सोशलिस्ट किसान सभा और किसान एकता समिति के प्रतिनिधि मंडल ने मृतक के परिजनों से नौशेरा, जीयनपुर में मुलाक़ात की. प्रतिनिधि मंडल में किसान नेता राजीव यादव, महेन्द्र यादव, साहबदीन, नन्दलाल यादव शामिल थे.  प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि दुर्गेश कुमार की हत्या जातीय विद्वेष का नतीजा है. दोषियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जाए, जिससे सामंती ताकतों की इतनी हिम्मत न हो कि किसी दलित युवक को पीट-पीटकर मार डालें. मृतक के पिता इंदल राम ने बताया कि 25 तारीख़ को गणेश यादव सात-आठ लोगों के साथ आकर धमकी दिए थे. लड़की से बात करने का मामला था. इससे स्पष्ट है कि हत्या पूर्वनियोजित थी.  दुर्गेश के पिता बार-बार कहते हुए अचेत हो जा रहे थे कि वह साढ़े पांच फुट का था. उन्होंने बताया कि घर से उसे बुलाकर पीट-पीटकर मारा और जब उनका बेटा दर्द से कराह रहा था तो दर्द कम करने के नाम पर दवा कहकर जबरदस्ती जहर पिला दिया. दुर्गेश ने फोन पर और जब उसको अस्पताल ले जा रहे थे तो कितनी बेरहमी से उसे पीटा गया बताते हुए बार-बार कह रहा था कि उसकी जान ब...

राज्यमंत्री/प्रभारी मंत्री बलदेव सिंह औलख ने बाढ़ पीड़ितों को वितरित की राशन किट।

शाहिद खान संवाददाता पीलीभीत*  पीलीभीत राज्यमंत्री/जनपद के प्रभारी मंत्री कृषि, कृषि शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग उ0प्र0 बलदेव सिंह औलख के साथ जिलाध्यक्ष संजीव प्रताप सिंह व जिलाधिकारी ज्ञानेन्द्र सिंह ने तहसील अमरिया क्षेत्रान्तर्गत जोशी कालोनी व टांडा विजैसी में पहुंचकर बाढ़ पीड़ितों को खाद्यान्न किट व तिरपाल वितरित की। इसके साथ ही उन्होंने प्रभावित लोगों से बातचीत की उनका हाल जाना व उनकी समस्याओं को सुना।  मा0 मंत्री जी ने खाद्यान्न किट में उपलब्ध सामान की जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में हमसब का कर्तव्य है कि बाढ़ पीडितों की मदद करने में सहयोग करें। उन्होंने कहा कि शीघ्र ही राजस्व टीम द्वारा किसानों की फसलों की हुई क्षति का आंकलन किया जायेगा और किसानों को मुआवजा दिया जायेगा।   जिलाधिकारी ने कहा कि बाढ़ से प्रभावित लोगों के घर तक राशन किट पहुंचायी जा रही है। उन्होंने कहा कि बाढ़ से प्रभावित ग्रामों में एडीएम/एसडीएम सहित विभिन्न टीमें मौके पर पहुंचकर बाढ़ पीड़ितों की लगातार मदद कर रही है।  उन्होंने कहा कि बाढ़ से प्रभावित ग्रामों में एंटी लार्वा...

भारतीय रणनीति और पड़ोसी देशों की उथल-पुथलदक्षिण एशिया की अस्थिरता और भारत की चुनौतियाँ

दक्षिण एशिया इस समय राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में है। नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव में हालिया घटनाओं ने भारत की सुरक्षा और रणनीतिक हितों पर सीधा प्रभाव डाला है। चीन और अमेरिका अपनी-अपनी टूलकिट के जरिए क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं। भारत के लिए केवल प्रतिक्रियात्मक नीति पर्याप्त नहीं है; उसे कूटनीतिक सक्रियता, आर्थिक निवेश, सुरक्षा सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करना होगा। साथ ही आंतरिक एकजुटता को बनाए रखना अनिवार्य है। भारत अब मूकदर्शक नहीं रह सकता; उसे निर्णायक भूमिका निभाकर क्षेत्रीय स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को सुरक्षित करना होगा। ✍️ डॉ. सत्यवान सौरभ दक्षिण एशिया आज जिस अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है, वह केवल स्थानीय राजनीति का परिणाम नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्तियों के गहरे हस्तक्षेप का दुष्परिणाम भी है। नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव जैसे देशों में हाल के वर्षों में जिस तरह राजनीतिक हलचलें और जनआंदोलन सामने आए हैं, उन्होंने पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। नेपाल में युवाओं की भीड़ का संसद पर धावा, बांग्लादेश में सरकार के खिल...

पंचायत का ऐतिहासिक फैसला : लोगों पर अत्याचार करने वाले दो भाईयों को किया कुरैशी बिरादरी से‌ निष्कासित।

Report By:Anita Devi  देवरनियां के मुंडिया जागीर में कुरैशी बिरादरी की बैठक में हुआ फैसला। जानलेवा हमले में बिरादरी से निष्कासित दोनों भाईयों समेत चार पर हुए हैं नामजद। पुलिस की रैड, आरोपी फरार। देवरनियां। लोगों पर जुल्म- अत्याचार करने वालों पर कानून का शिकंजा कसने के अलावा बिरादरी का शिकंजा कसने लगा है। नगर पंचायत देवरनियां के कस्बा मुंडिया जागीर में कुरैशी बिरादरी के लोगों पर जुल्म करने वाले दो सगे भाईयों को पूरे परिवार के साथ बिरादरी से निष्कासित करने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया है। कस्बा मुंडिया जागीर निवासी अशरफ कुरैशी, रहीसा कुरैशी दोनों सगे भाईयों के अलावा रहीसा कुरैशी के पुत्र इस्लाम कुरैशी  और  अलीम कुरैशी पर मुंडिया जागीर निवासी मोहम्मद आसिफ ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि  उक्त लोगों ने उस पर जानलेवा हमला किया है, जिससे वह बाल-बाल बच गया। इस रिपोर्ट के बाद सी.ओ बहेड़ी व  देवरनियां कोतवाली पुलिस ने आरोपियों के घर रैड मारी थी, मगर वह हत्थे नहीं चढे।  ... कुरैशी बिरादरी का ऐतिहासिक फैसला। सोमवार रात कुरैशी बिरादरी की बैठक मुंडिया...

सपा युवा इकाई युवजन सभा में संगठन विस्तार में ज़िला अध्यक्ष हरगोविंद गंगवार ने मोहम्मद फैज़ अंसारी को पुनः ज़िला उपाध्यक्ष नियुक्त किया*

शाहिद खान संवाददाता पीलीभीत*  पीलीभीत। समाजवादी पार्टी की युवा इकाई समाजवादी युवजन सभा में संगठन विस्तार की प्रक्रिया के तहत ज़िला अध्यक्ष हरगोविंद गंगवार ने  मोहम्मद फैज़ अंसारी 'शानू' को पुनः ज़िला उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। उनकी नियुक्ति की घोषणा के साथ ही कार्यकर्ताओं में हर्ष का माहौल है। मोहम्मद फैज़ अंसारी लंबे समय से समाजवादी आंदोलन से जुड़े हुए हैं और पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। संगठन के विभिन्न कार्यक्रमों, आंदोलनों और सामाजिक सरोकारों में उनकी सक्रिय उपस्थिति ने युवाओं के बीच उन्हें एक लोकप्रिय चेहरा बना दिया है। इस अवसर पर ज़िला अध्यक्ष हरगोविंद गंगवार ने कहा कि फैज़ अंसारी शानू ने हमेशा पार्टी के सिद्धांतों को सर्वोपरि रखते हुए कार्य किया है। युवाओं को जोड़ने और समाजवादी विचारधारा को मज़बूती देने में उनकी भूमिका सराहनीय है। हमें पूरा विश्वास है कि आगे भी वे इसी तरह संगठन को मज़बूत करेंगे। नियुक्ति पर मोहम्मद फैज़ अंसारी ने ज़िला अध्यक्ष सहित संपूर्ण नेतृत्व का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मैं संगठन को और अधिक...

संगम फाउंडेशन व हिंदी उर्दू मंच के संयुक्त तत्वावधान में एक शानदार नातिया मुशायरा हुआ*

शाहिद खान संवाददाता पीलीभीत*  पीलीभीत: संगम फाउंडेशन व हिंदी उर्दू मंच के संयुक्त तत्वावधान में एक शानदार नातिया मुशायरा जश्ने ईद मिलादुन्नबी के  सिलसिले में  हाजी ज़हीर अनवर की सरपरस्ती में ग्रेस पब्लिक स्कूल ख़ुदा गंज में आयोजित किया गया जिसकी *सदारत मौलाना मुफ्ती हसन मियां क़दीरी* ने की, निज़ामत का कार्य ज़ियाउद्दीन ज़िया एडवोकेट ने किया जनाबे सदर हसन मियां कदीरी ने अपने कलाम मे कहा जलवाए हुस्ने इलाही प्यारे आका की है जात,रुख से रोशन दिन हैं उन के जुल्फ़ का सदका है रात मुशायरा कनवीनर मुजीब साहिल ने यूं फरमाया दिल के बोसीदा ज़ख्म सीने को इश्क  वाले  चले  मदीने   को हाशिम नाज़ ने अपनी नात पढ़ते हुए कहा बिना ज़िक्रे नबी मेरी कोई पहचान थोड़ी है,कि नाते मुस्तफा लिखना कोई आसान थोड़ी है नाजिम नजमी ने अपने कलाम में यूं कहा सुकूने दिल नहीं मिलता उसे सारे जमाने में बुलालो अबतो आका मुझ को अपने आस्ताने में हर सिमत यहां बारिशे अनवारे नबी है उस्ताद शायर शाद पीलीभीती ने अपने मखसूस अंदाज में कहा  बन के अबरे करम चार सू छा गए जब जहां में हबीबे खुद...

टैबलेट या सरकारी खिलौने? तकनीकी शिक्षा का बड़ा धोखा

हरियाणा सरकार ने कोविड काल में 700 करोड़ रुपये खर्च कर 5 लाख छात्रों को टैबलेट बांटे थे, जिनका उद्देश्य डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना था। परंतु तीन साल बाद इन टैबलेट्स में न तो सिम कार्ड हैं, न इंटरनेट की सुविधा, और न ही इनसे पढ़ाई हो रही है। इनमें 2025-26 तक का सिलेबस तो अपलोड है, लेकिन उपयोग शून्य। यह लेख सरकारी तंत्र की लापरवाही, नीति निर्माण की खामियों और बच्चों के भविष्य के साथ हुए छल पर सवाल उठाता है। तकनीक का दिखावा शिक्षा के अधिकार की हत्या बन चुका है। - डॉ. सत्यवान सौरभ कोविड-19 ने भारत समेत पूरी दुनिया को शिक्षा के डिजिटल स्वरूप की अहमियत से रूबरू कराया। जब स्कूल बंद थे, तब ऑनलाइन क्लास ही बच्चों की एकमात्र शैक्षणिक जीवन रेखा बनी। ऐसे में हरियाणा सरकार द्वारा 700 करोड़ की लागत से 5 लाख छात्रों को टैबलेट बाँटना एक प्रशंसनीय निर्णय प्रतीत हुआ। योजना थी कि छात्र आधुनिक तकनीक से जुड़ेंगे, डिजिटल ज्ञान की दुनिया में कदम रखेंगे और सरकारी शिक्षा का स्तर ऊँचा उठेगा। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीता, यह योजना एक झूठे वादे, दिखावटी प्रयास और भारी भरकम बजट की बर्बादी में बदलती गई।  एक रिपोर...

*माला, मीटिंग और मौन हसला: हरियाणा की शिक्षक ट्रांसफर ड्राइव का कटु सच*

(MIS डेटा, ट्रांसफर नीति और कैबिनेट बैठकों की चर्चाएँ केवल लटकाने की औपचारिकता)  शिक्षकों के बीच यह धारणा गहराती जा रही है कि MIS डेटा, ट्रांसफर नीति और कैबिनेट बैठकों की चर्चाएँ केवल औपचारिकता बनकर रह गई हैं। कई बार इन्हें निर्णयों को टालने या प्रक्रिया में पारदर्शिता के भ्रम को बनाए रखने के साधन के रूप में देखा जाता है। शिक्षक स्थानांतरण प्रक्रिया अब पारदर्शिता और निष्पक्षता की कसौटी पर खरी नहीं उतर रही है। MIS पोर्टल, नीति और मीटिंग अब बहाने लगने लगे हैं। संगठन मौन हैं और शिक्षकों में असंतोष गहराता जा रहा है। शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह नीति को स्पष्ट, तिथि को निश्चित और प्रक्रिया को जवाबदेह बनाए। वरना यह असंतोष आंदोलन में बदल सकता है। शिक्षक सम्मान के साथ कार्य करें, यह तभी संभव है जब उन्हें उनके अधिकार बिना अपील के प्राप्त हों। ✍🏻 डॉ. सत्यवान सौरभ (कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार) हरियाणा में शिक्षक ट्रांसफर ड्राइव अब एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया न रहकर, एक गंभीर शैक्षिक और सामाजिक मुद्दा बन चुका है। हर साल शिक्षक समुदाय इस प्रक्रिया से जुड़ी पारदर्शिता, समयबद्धता और न्य...

रक्षाबंधन: क्या वास्तव में निभा रहे हैं भाई-बहन प्रेम और रक्षा का वादा?

रक्षाबंधन केवल राखी बांधने और गिफ्ट देने का त्योहार नहीं, बल्कि भाई-बहन के स्नेह, विश्वास और परस्पर सहयोग का प्रतीक है। आज यह पर्व सोशल मीडिया दिखावे और औपचारिकताओं में सिमटता जा रहा है। भाई-बहन सालभर दूर रहते हैं, पर एक दिन फोटो खिंचाकर ‘रिश्ता निभाने’ का प्रमाण दे देते हैं। असली रक्षा तब है जब मुश्किल वक्त में दोनों एक-दूसरे का सहारा बनें, चाहे वह भावनात्मक हो या आर्थिक। त्योहार का अर्थ लाइक्स नहीं, बल्कि लाइफ में प्रेज़ेंस है। राखी का धागा केवल कलाई पर नहीं, दिल में भी बांधना जरूरी है। -डॉ. सत्यवान सौरभ त्योहार भारत की सांस्कृतिक आत्मा का आईना हैं। वे केवल कैलेंडर में दर्ज तारीखें नहीं होते, बल्कि पीढ़ियों से जुड़ी भावनाओं, रिश्तों और सामाजिक बंधनों का जीवंत प्रतीक होते हैं। रक्षाबंधन भी ऐसा ही एक पर्व है, जो भाई-बहन के रिश्ते को स्नेह, सुरक्षा और विश्वास की डोर में बांधने का प्रतीक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम आज वास्तव में इस पर्व के मूल भाव को निभा रहे हैं, या यह भी अन्य त्योहारों की तरह दिखावे और औपचारिकता के चकाचौंध में खो गया है? परंपरा से वर्तमान तक...

("ट्रांसफर का इंतज़ार: 9 साल, 9 बहाने") *हरियाणा में टीचर ट्रांसफर: सरकारी सिस्टम का अमर रोग* "हरियाणा में शिक्षक ट्रांसफर: वादा, बहाना और थकान"

"जब एक शिक्षक रोज़ 150 किलोमीटर सफर करता है, तो वह सिर्फ सड़क नहीं नापता—वह अपनी उम्र, अपने रिश्ते और अपने सपनों को भी नापता है।" हरियाणा की ट्रांसफर व्यवस्था वैसी ही है जैसे किसी घर में पुराना अलार्म घड़ी—जो साल में एक-दो बार सही बज जाती है, बाकी समय बस टिक-टिक करती रहती है। फर्क बस इतना है कि यहां गलती से भी अलार्म बज जाए, तो सरकार चौंककर कहती है—"अरे! यह तो अपने आप हो गया, अगली बार ध्यान रखेंगे कि जल्दी न हो।" -डॉ. सत्यवान सौरभ हरियाणा में शिक्षक ट्रांसफर एक ऐसी बीमारी बन चुका है, जिसका कोई इलाज सरकार के पास नहीं, और शायद खोजने की कोशिश भी नहीं। यह बीमारी केवल प्रशासनिक फाइलों में नहीं, बल्कि हजारों शिक्षकों के दिलों, दिमाग और घरों में पसरी हुई है। बीते नौ साल से इसका लक्षण एक ही है—वादा, तारीख, बहाना, फिर नई तारीख, और फिर एक और बहाना। सरकारें आती-जाती रहीं, चेहरों पर बदलाव होता रहा, पर इस बीमारी की आदत नहीं बदली। सरकार के लिए यह सिर्फ एक प्रक्रिया है—कंप्यूटर के एमआईएस पोर्टल पर एक क्लिक, किसी फाइल को एक टेबल से दूसरी टेबल पर रखना। लेकिन एक शिक्षक के लिए ट्रांसफ...

जर्जर स्कूल, खतरे में भविष्यटूटी छतों और दीवारों के बीच कैसे पलेगी शिक्षा की नींव?

भारत में लाखों सरकारी विद्यालय जर्जर हालत में हैं। टूटी छतें, दरारों वाली दीवारें, पानी व शौचालय का अभाव—ये बच्चों की सुरक्षा और पढ़ाई दोनों पर खतरा हैं। पिछले नौ वर्षों में 89 हज़ार सरकारी स्कूल बंद हुए, जिससे शिक्षा में अमीर-गरीब की खाई और गहरी हुई। शिक्षा का अधिकार कानून सुरक्षित भवन की गारंटी देता है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है। सरकार, समाज और नागरिकों को मिलकर विद्यालय भवनों की मरम्मत और सुविधाओं में निवेश करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ मलबों पर नहीं, मजबूत नींव पर अपने सपने खड़ी कर सकें। -डॉ. सत्यवान सौरभ शिक्षा किसी भी राष्ट्र की आत्मा होती है और विद्यालय उसके मंदिर। यह वह स्थान है जहाँ बच्चों के सपनों को आकार मिलता है, विचारों को पंख मिलते हैं और भविष्य की नींव रखी जाती है। परंतु दुख की बात है कि भारत में, विशेषकर ग्रामीण इलाकों और आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में, इन मंदिरों की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। अनेक विद्यालयों में छतें टूटी हुई हैं, दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें हैं, बरसात में पानी टपकता है, खिड़कियाँ टूटी हुई हैं, बेंच जर्जर हो चुकी हैं और पीने के पानी तथा शौचालय...

स्वतंत्रता का अधूरा आलाप"आज़ादी केवल तिथि नहीं, एक निरंतर संघर्ष है। यह सिर्फ़ झंडा फहराने का अधिकार नहीं,बल्कि हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान देने की जिम्मेदारी है।जब तक यह जिम्मेदारी पूरी नहीं होती, हमारी स्वतंत्रता अधूरी है।"

— डॉ. प्रियंका सौरभ 15 अगस्त 1947 को हमने विदेशी शासन की बेड़ियों को तोड़ दिया था। तिरंगे की फहराती लहरों में वह रोमांच था, जो सदियों की गुलामी और अत्याचार के बाद जन्मा था। हर चेहरे पर एक ही उम्मीद थी—अब अपना देश अपनी मर्ज़ी से चलेगा, अब हर नागरिक को बराबरी का हक़ मिलेगा, अब हम अपने भविष्य के निर्माता होंगे। लेकिन आज़ादी के 78 साल बाद यह सवाल कचोटता है—क्या वह सपना पूरा हुआ? आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है, विज्ञान और तकनीक में नए मुकाम हासिल हो रहे हैं। मेट्रो ट्रेन, डिजिटल पेमेंट, सैटेलाइट मिशन और वैश्विक मंच पर बढ़ता प्रभाव हमें गर्व से भर देता है। लेकिन इस चमक के पीछे एक सच छुपा है—हमारी आज़ादी अब भी अधूरी है। यह अधूरापन केवल गरीबी या बेरोज़गारी का नहीं, बल्कि सोच, व्यवस्था और व्यवहार में गहरे बैठी असमानताओं का है। हमारे यहां लोकतंत्र का मतलब अक्सर सिर्फ़ चुनाव रह गया है। हर पाँच साल में वोट डालने को ही हम अपनी भागीदारी मान लेते हैं, लेकिन उसके बाद नेता और जनता के बीच एक अदृश्य दूरी बन जाती है। जनता शिकायत करती है, सरकार सफ़ाई देती ...

"आवारा कुत्तों पर लगाम: मानव जीवन पहले""सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश—करुणा के साथ सुरक्षा भी जरूरी"

"मानव जीवन और सुरक्षा पहले — सुप्रीम कोर्ट" सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि हर इलाके से आवारा कुत्तों को हटाकर सुरक्षित स्थानों पर रखा जाए। प्रक्रिया में बाधा डालने वाले संगठनों या व्यक्तियों पर सख्त कार्रवाई होगी। यह आदेश बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दिया गया है। कुत्तों के हमलों और रेबीज़ जैसी घातक बीमारी के बढ़ते मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। कोर्ट ने संतुलित समाधान सुझाया—कुत्तों को मारा नहीं जाएगा, बल्कि उन्हें सुरक्षित आश्रयों में रखा जाएगा। यह मानव और पशु, दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक ठोस कदम है। --- डॉ. सत्यवान सौरभ सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय, जिसमें हर इलाके से आवारा कुत्तों को हटाकर सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने का निर्देश दिया गया है, एक अहम और लंबे समय से प्रतीक्षित कदम है। कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा—"मानव जीवन और सुरक्षा पहले"—जो इस मुद्दे पर चल रही बहस में एक निर्णायक रुख को दर्शाता है। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज के लिए भी एक चेतावनी है कि अब समय आ ग...

भारत@79: अटूट शक्ति की ओर"79 वर्षों की यात्रा से विश्व-नेतृत्व की दहलीज़ तक — भारत का समय अब है।"

"उन्नासी वर्ष की यात्रा में भारत ने संघर्ष से सफलता, और सफलता से नेतृत्व की राह तय की है। आज हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र, उभरती अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक महाशक्ति के रूप में खड़े हैं। परंतु असली लक्ष्य अभी बाकी है — शिक्षा में नवाचार, आत्मनिर्भर कृषि-उद्योग, स्वदेशी रक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और सामाजिक एकता के पाँच स्तंभ हमें विश्व नेतृत्व की ओर ले जाएंगे। यह समय उत्सव का भी है और संकल्प का भी, ताकि भारत न केवल अपने लिए, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए विकास और शांति का मार्गदर्शक बने।" — डॉ. सत्यवान सौरभ उन्नासी वर्ष पहले, आधी रात के सन्नाटे में जब भारत ने स्वतंत्रता का पहला श्वास लिया, तो वह केवल एक राजनीतिक घटना नहीं थी। वह एक संपूर्ण सभ्यता के पुनर्जन्म का क्षण था। तिरंगा जब लाल किले की प्राचीर पर लहराया, तो हर गाँव, हर शहर, हर हृदय में आत्मसम्मान का एक दीप जल उठा। यह दीप केवल एक दिन के लिए नहीं था; इसे जलाए रखना हमारी पीढ़ियों की जिम्मेदारी बन गई। आज हम उस गौरवशाली यात्रा के उन्नासी वर्ष पूरे कर चुके हैं। इस दौरान हमने अनगिनत उपलब्धियाँ हासिल कीं — वैज्ञानिक प्रगति...

साहित्य और सत्ता की तस्वीरें: रसूख, दिखावा और लेखन की गरिमासाहित्य और सत्ता: तस्वीरों की चमक बनाम शब्दों का मूल्य

लेखक की सबसे बड़ी पूँजी उसके शब्द और उसकी स्वतंत्रता है, न कि सत्ता से नज़दीकी की तस्वीरें। प्रभावशाली व्यक्तियों को मंच पर पुस्तक भेंट करने और उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रचारित करने से क्षणिक पहचान मिल सकती है, लेकिन इससे साहित्य की गरिमा कम होती है। सचमुच मूल्यवान किताब पाठकों के दिलों में जगह बनाती है, न कि नेताओं की अलमारियों में धूल खाती है। लेखक का असली सम्मान सत्ता के प्रमाणपत्र में नहीं, बल्कि पाठकों की स्वीकृति में है। इसलिए साहित्यकार को अपने शब्दों पर भरोसा करना चाहिए, न कि सत्ता की मुस्कान पर। -डॉ. सत्यवान सौरभ सोशल मीडिया के इस दौर में तस्वीरें केवल यादें नहीं, बल्कि संदेश भी होती हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप और ट्विटर (अब एक्स) पर रोज़ाना सैकड़ों ऐसी तस्वीरें दिखाई देती हैं, जिनमें कोई लेखक या लेखिका मुख्यमंत्री, मंत्री, सत्तारूढ़ दल के नेता, किसी उच्चाधिकारी या किसी अन्य प्रभावशाली व्यक्ति को अपनी पुस्तक भेंट कर रहा होता है। इन तस्वीरों में अक्सर एक पैटर्न दिखता है—नेता या अधिकारी के चेहरे पर औपचारिक, हल्की-सी कारोबारी मुस्कान, कभी-कभी उकताहट या झल्लाहट भी, और...

सैनिक ही असली ध्वजवाहकगाँव-नगरों में ध्वज केवल पूर्व सैनिकों और शहीदों के परिवारों के हाथों में लहराए

(79वें स्वतंत्रता दिवस पर विशेष संपादकीय) तिरंगा केवल राष्ट्रीय ध्वज नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आत्मा और बलिदानों की गाथा है। इसकी असली गरिमा तभी बनी रहेगी जब इसे वही हाथ फहराएँ जो इसके लिए प्राणों की आहुति देने को तत्पर रहते हैं। इसलिए गाँव-नगरों में झंडा फहराने का अधिकार शहीद सैनिकों की विरांगनाओं, पूर्व सैनिकों और वर्तमान सैनिकों को मिलना चाहिए। यह परंपरा केवल सम्मान ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी बनेगी। राष्ट्र को बलिदान और सेवा की पहचान यही सिखाती है कि सैनिक ही असली ध्वजवाहक हैं। -डॉ सत्यवान सौरभ स्वतंत्रता दिवस केवल एक तिथि या राष्ट्रीय पर्व नहीं है, बल्कि यह उन लाखों बलिदानों की याद दिलाने वाला दिन है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें स्वतंत्रता दिलाई। 15 अगस्त केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन का क्षण है। हर बार जब तिरंगा लहराता है तो हमें यह सोचना चाहिए कि इस पवित्र ध्वज का सबसे बड़ा अधिकार आखिर किसके हाथों में होना चाहिए। आज यह प्रश्न और भी प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि स्वतंत्रता के 79 वर्षों बाद भी हम इस सवाल का स्पष्ट और न्याय...

“छला समर्पण”(एक सच्ची कहानी)

--- यह कहानी खुली छोड़ दी गई है, ताकि पाठक सोच सके — क्या कभी छोटे भाई, माता- पिता और बहनें उस त्याग को समझेंगे? या यह भी एक ऐसी कहानी होगी, जो सिर्फ पीपल के पत्तों की सरसराहट में सुनी जाएगी… डॉ. सत्यवान सौरभ घर के आँगन में पीपल का पुराना पेड़ खामोशी से खड़ा था। उसकी छाँव में खेलते हुए बीते साल जैसे किसी पुराने संदूक में बंद पड़े थे। इस घर की दीवारों ने न जाने कितनी कहानियाँ देखी थीं — हँसी की, आँसुओं की, त्याग और उपेक्षा की। बड़े बेटे ने महज़ छठी कक्षा से ही घर का बोझ अपने कंधों पर उठा लिया था। पिता का स्वभाव ऐसा कि घर के कामों में कोई स्थायी हाथ बँटाना उनकी आदत में नहीं था। न कोई बड़ा सपना, न मेहनत से आगे बढ़ने की चाह। उस उम्र में, जब बाकी बच्चे अपनी पढ़ाई और खेलों में मग्न होते हैं, उसने ट्यूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई भी पूरी की और छोटे भाई की भी। बहनों की पढ़ाई के लिए जितना संभव हो सका, उसने पैसे जुटाए। कपड़े, किताबें, फीस — हर ज़रूरत में वह आगे खड़ा था। शादी के बाद उसकी पत्नी भी इस जिम्मेदारी में बराबर की साझेदार बनी। वह न सिर्फ अपने घर की जिम्मेदारी निभाती, बल...

पति की जानबूझकर घरेलू कामों में अयोग्यता : बदलते रिश्तों का संकट"साझेदारी और बराबरी से ही टिकेगा आधुनिक विवाह"

विवाह केवल साथ रहने का नाम नहीं, बराबरी की साझेदारी है। घरेलू काम भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितनी नौकरी या व्यवसाय। जानबूझकर अयोग्यता दिखाना रिश्तों को खोखला कर देता है। बराबरी से जिम्मेदारी बाँटना ही खुशहाल परिवार की नींव है। आधुनिक विवाह तभी टिकाऊ होगा जब साझेदारी और सम्मान दोनों हों। ✍️ डॉ. प्रियंका सौरभ आधुनिक जीवनशैली ने जहाँ रिश्तों में नए अवसर खोले हैं, वहीं कई नई चुनौतियाँ भी खड़ी कर दी हैं। शिक्षा, रोजगार और तकनीक ने महिलाओं को पहले से अधिक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाया है। आज की महिला घर के दायरे से निकलकर नौकरी, व्यवसाय और प्रशासनिक जिम्मेदारियों तक सक्रिय रूप से पहुँच रही है। लेकिन विडंबना यह है कि घर की दहलीज़ के भीतर उसकी स्थिति उतनी नहीं बदली जितनी बदलनी चाहिए थी। अधिकांश परिवारों में अभी भी घरेलू कार्यों की जिम्मेदारी लगभग पूरी तरह से महिलाओं पर ही डाल दी जाती है। इस समस्या का एक नया और चिंताजनक रूप सामने आया है – पति द्वारा घरेलू कामों में जानबूझकर अयोग्यता दिखाना। इसे पश्चिमी समाज में वेपनाइज्ड इनकंपिटेंस कहा जाता है, जिसका सीधा अर्थ है कि पति जानबूझकर घरेल...

"नेपाल का ऑनलाइन लॉकडाउन: आज़ादी पर सवाल"(सोशल मीडिया पर नेपाल का बड़ा ताला: लोगों की आवाज़ पर रोक या नियमों की ज़रूरत?)

नेपाल सरकार ने 26 बड़े सोशल मीडिया और संदेश भेजने वाले मंच—जिनमें फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स (पहले ट्विटर) शामिल हैं—को देश में बंद करने का आदेश दिया है। सरकार का तर्क है कि कंपनियों ने स्थानीय कार्यालय नहीं खोला और शिकायत निवारण व्यवस्था नहीं बनाई, जिससे अफवाहें और साइबर अपराध बढ़ रहे हैं। आलोचक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। इस कदम से आम नागरिक, परिवार, व्यापारी और सामग्री निर्माता प्रभावित होंगे। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि पूर्ण प्रतिबंध की बजाय कंपनियों को नियमों का पालन कराने और जनता की आवाज़ सुरक्षित रखने वाला संतुलित समाधान बेहतर होगा। --- डॉ प्रियंका सौरभ नेपाल जैसे छोटे लोकतांत्रिक देश ने हाल ही में ऐसा बड़ा निर्णय लिया है जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। सरकार ने 26 सोशल मीडिया और संदेश मंचों पर अचानक रोक लगाने का आदेश दिया। इसमें फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सबसे लोकप्रिय मंच शामिल हैं। यह फैसला जितना अचानक लिया गया, उतना ही गहरी बहस भी शुरू कर दी कि क्या यह कदम नागरिक अधिकारों पर हमला है या देश की डिज...