मुस्लिम बर्चस्व वाली कैंट सीट दो बार जनसंघ का प्रत्याशी जीत सकता है, तो पीडीए फॉर्मूला पर मुस्लिम प्रत्याशी भी चुनाव जीत सकता है?
रिपोर्ट-मुस्तकीम मंसूरी
जनपद बरेली की 125 कैंट विधानसभा क्षेत्र 1967 से 2007 तक मुस्लिम मतदाताओं के वर्चस्व वाला कैंट विधानसभा क्षेत्र माना जाता रहा था, परंतु 2008 के परिसीमन के बाद पहली बार 2012 के चुनाव में भाजपा अपना परचम लहराने में कामयाब रही, अगर कैंट विधानसभा क्षेत्र के अब तक के आंकड़ों पर गौर करें तो 1957 और 1962 लगातार मोहम्मद हुसैन कांग्रेस से विधायक बने, परंतु 1967 के चुनाव में आर बल्लभ भारतीय जनसंघ (जो अब भाजपा है) से चुनाव जीते, परंतु 1969 में अशफाक अहमद पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर विधायक चुने गए, लेकिन 1974 में अशफाक अहमद को चुनाव हराकर बादाम सिंह पहली बार भारतीय जनसंघ पार्टी से चुनाव
जीतकर विधायक बने, लेकिन 1977 में जनता ने अशफाक अहमद को फिर कांग्रेस से विधायक चुनकर नेतृत्व करने का मौका दिया, वर्ष 1980 का चुनाव भी अशफाक अहमद कांग्रेस से जीतकर दूसरी बार विधायक बने, लेकिन वर्ष 1985 में कांग्रेस ने रफीक अहमद रफ्फन साहब को कांग्रेस से चुनाव लड़ाया रफ्फन साहब भी कैंट से चुनाव जीतकर विधायक बने, वही 1989 में जनता दल के टिकट पर पहली बार प्रवीण सिंह ऐरन को कैंट की जनता ने विधायक चुनकर भेजा, परंतु वर्ष 1991 में प्रवीण सिंह ऐरन को कांग्रेस से पहली बार चुनाव लड़े इस्लाम साबिर ने चुनाव में पराजित कर कैंट विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व किया, लेकिन वर्ष 1993 के चुनाव में प्रवीण सिंह ऐरन ने इस्लाम साबिर को चुनाव हराकर पहली बार समाजवादी पार्टी का परचम लहराया,1996 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े अशफाक अहमद ने प्रवीण सिंह ऐरन को चुनाव हराकर कैंट विधानसभा का नेतृत्व किया, 2002 के चुनाव में इस्लाम साबिर का पर्चा खारिज होने पर उनके बेटे शहज़िल इस्लाम ने सपा के समर्थन से निर्दलीय चुनाव जीत कर कैंट विधानसभा का नेतृत्व किया, लेकिन 2007 के चुनाव में बसपा के टिकट पर वीरेंद्र सिंह ने कैंट से चुनाव जीतकर पहली बार बसपा का परचम लहराया, परंतु 2008 के परिसीमन के बाद पहली बार राजेश अग्रवाल ने कैंट से चुनाव जीतकर भाजपा की चुनावी जीत का परचम लहराया ,जिसके बाद 2017 के चुनाव में राजेश अग्रवाल ने दोबारा जीत हासिल कर भाजपा के कब्जे को बरकरार रखा, लेकिन 2022 में भाजपा संजीव अग्रवाल को कैंट के चुनावी मैदान में उतारकर जिताने और जीत की हैट्रिक बनाने में कामयाब हुई, लेकिन 2022 के चुनाव के बाद राजनीतिक गलियारों,और कुछ सत्ता के चाटुकारों का खेल शुरू होता है, कि अब कैंट विधानसभा से मुस्लिम चुनाव नहीं जीत सकता, तो अब सवाल यह उठता है कि मुस्लिम वर्चस्व वाली कैंट विधानसभा से दो बार भारतीय जनसंघ पार्टी (जो अब भाजपा है) के प्रत्याशी चुनाव जीत सकते हैं, तो मुस्लिम प्रत्याशी भी कैंट से चुनाव जीत सकता है? क्योंकि वर्ष 2017 के चुनावी गठबंधन का प्रत्याशी जीत सकता था, परंतु कांग्रेस और सपा के जिला और महानगर अध्यक्षों के बीच तालमेल की कमी, बूथ स्तर पर संगठन का ना होना, वार्ड स्तर की कमेटियों का निष्क्रिय होने का पूरा फायदा उठाते हुए भाजपा चुनाव जीतने में कामयाब हो गई, वही बात करें 2022 कैंट विधानसभा चुनाव की तो सपा द्वारा आख़री समय में प्रत्याशी का बदलना, और सजातीय वोट का भाजपा के पक्ष में जाना हार का सबसे बड़ा कारण रहा, जबकि 98% मुस्लिम वोट सपा के पक्ष में गया था, यह इस बात का इशारा है कि कैंट क्षेत्र का वैश्य मतदाता साइकिल नहीं कमल को पसंद करता है, अगर वैश्य मतदाता शहर और कैंट विधानसभाओं पर सजातीय प्रत्याशियों के साथ होता तो दोनों सीटों पर सपा का कब्जा होता, परंतु सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला दलित,
पिछड़ा,आधी आबादी का फॉर्मूला 25% भी कामयाब होता है तो कैंट से मुस्लिम प्रत्याशी जीत सकता है? और शहर से भी मुस्लिम प्रत्याशी की जीत की संभावनाएं बढ़ जाएगीं, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव का पीडीए फार्मूला सफल होता है, और सपा संगठन ईमानदारी से पार्टी लाइन पर काम करने लगे तो बरेली सपा के जो परिणाम आएंगे वह कल्पना से परे होंगे।
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