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अल्पसंख्यको के अधिकार 18 दिसंबर अल्पसंख्यक दिवस पर विशेष लेख


अल्पसंख्यकों के अधिकार 

पूर्व  एडिटर राज्य सभा टीवी अतिथि डॉ नरेश चंद्र सक्सेना पूर्व सचिव योजना आयोग प्रोफेसर सुब्रता मुखर्जी (राजनीति विज्ञान  के जानकार) की बातचीत

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यकों के निर्धारण के संबंध में केंद्र की 26 साल पुरानी एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी भी समूह को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिए धर्म को भारतीय संदर्भ में देखा जाना चाहिए। अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका में किसी समुदाय की राज्यवार आबादी के आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा देने के संबंध में दिशा-निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

क्या कहना था याचिकाकर्ता का?

याचिकाकर्ता के मुताबिक, देश के आठ राज्य लक्षदीप, मिज़ोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरूणाचल प्रदेश मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। लेकिन उनके अल्पसंख्यक अधिकार वहां बहुसंख्यक लोग अनाधिकृत तरीके से ले रहे हैं, क्योंकि केंद्र ने उन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून की धारा 2 (सी) के तहत अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है। इस कारण ये लोग संविधान के अनुच्छेद 25 और 30 के तहत मिले अधिकारों से वंचित हैं।

अल्पसंख्यक कौन हैं?

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत छह समुदायों को भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है: सिख, मुस्लिम, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन।

  • आम बोलचाल में, "अल्पसंख्यक" ऐसे लोगों को समझा जाता है जिन की हिस्सेदारी किसी समूह में आधे से भी कम होती है यानी उनकी आबादी 50 फ़ीसदी से कम होती है और साथ ही कुछ अन्य पैमाने मसलन जाति, धर्म, परंपरा और संस्कृति और भाषा के आधार पर बाकी आबादी से भिन्न होते हैं।
  • ग़ौरतलब है कि भारत का संविधान कहीं भी 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित नहीं करता है।
  • हालाँकि, अनुच्छेद 29 में ‘अल्पसंख्यक’ शब्द का प्रयोग किया गया है, और "अलग भाषा, लिपि या संस्कृति वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग" को अल्पसंख्यक के तौर पर इंगित करता है, लेकिन यह बात पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।
  • अनुच्छेद 30 में भी अल्पसंख्यकों का जिक्र है और इसमें अल्पसंख्यक होने के दो आधार बताए गए हैं पहला धार्मिक और दूसरा भाषाई।
  • इसके अलावा अनुच्छेद 350A और 350B में भी भाषाई अल्पसंख्यकों का जिक्र है।
  • साल 2002 के एक मामले TMA Pai Foundation बनाम Karnataka में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अनुच्छेद 30 में जिस मकसद से अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग किया गया है वह राज्यवार निर्धारित किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 30 के मकसद से अगर पूरे देश की जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यकों का निर्धारण किया जाएगा तो यह उचित नहीं होगा। इसके अलावा, 'अनुसूचित जाति' और 'अनुसूचित जनजाति' को भी राज्यों के स्तर पर निर्धारित किया जाता है।

अल्पसंख्यक निर्धारण को लेकर मौजूदा व्यवस्था क्या है?

अभी तक, भाषाई अल्पसंख्यकों की पहचान राज्यवार की जाती है, और इसका निर्धारण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि धार्मिक अल्पसंख्यकों का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।

कौन है भाषाई अल्पसंख्यक?

भाषाई अल्पसंख्यक के तहत ऐसे लोग आते हैं, जिनकी मातृभाषा राज्य या राज्य के अधिकांश हिस्से से अलग होता है।

मज़हब के आधार पर किसकी कितनी आबादी?

भारत में अल्पसंख्यकों को प्रदान किए गए संवैधानिक अधिकार और सुरक्षा उपाय

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) की स्थापना की है।

  • अनुच्छेद 29(1) के तहत, अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण का अधिकार
  • अनुच्छेद 29(2) के तहत, राज्य द्वारा पोषित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में केवल इस आधार पर प्रवेश देने के लिए मना नहीं किया जा सकता कि अमुक व्यक्ति किसी धर्म, जाति, नृजाति या भाषा विशेष से जुड़ाव रखता है। यानी सभी धार्मिक, भाषायी व सामुदायिक अल्पसंख्यकों के साथ किसी भी राज्य शिक्षा संस्थान में भेदभाव नहीं किया जाएगा और न ही उन पर किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने का दबाव होगा।
  • इस तरह भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए शैक्षिक अधिकार और उनकी भाषा एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए अनुच्छेद 29 और 30 के तहत कई विशेष प्रावधान किए गए हैं।
  • देश के हर इलाके में रह रहे सभी अल्पसंख्यकों को उनकी भाषा, लिपि तथा संस्कृति के संरक्षण का अधिकार है।
  • साथ ही संविधान ऐसा निर्देश भी जारी करता है कि देश में ऐसी कोई भी कानून और नीतियाँ नहीं बनाई जाएंगी, जिनसे इन अल्पसंख्यकों की संस्कृति, भाषा व लिपि का शोषण हो।
  • सभी अल्पसंख्यकों को यह अधिकार है कि वे देश किसी भी इलाके में अपनी इच्छानुसार कोई भी शैक्षिक संस्थान खोलने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी भी धार्मिक, भाषायी व सामुदायिक अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थानों को राज्य द्वारा अनुदान प्रदान करने में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • इसी तरह भाषाई अल्पसंख्यकों को भी कई प्रकार के अधिकार दिए गए हैं।

नागरिकता कानून विवाद और भारतीय अल्पसंख्यक

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विवाद की स्थिति देखी जा रही है जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के तहत समझा जा सकता है-

  • इस अधिनियम में बांग्लादेश, पाकिस्तान तथा अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों को धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर नागरिकता देने की बात तो कही गई है लेकिन पाकिस्तान के ही कई ऐसे मुस्लिम समुदाय जैसे कि शिया, वोहरा तथा अहमदिया हैं जो उत्पीड़न के शिकार तो हैं लेकिन उन्हें भारतीय नागरिकता देने की बात नहीं की गई है।
  • कई विधि विशेषज्ञों तथा विद्वानों द्वारा यह कहा जा रहा है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद-14 के खिलाफ है क्योंकि यह धार्मिक आधार पर विभेद करता है, जो सभी के लिए समानता के अधिकार के विपरीत है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत एक ऐसा देश है जो सर्वधर्मसमभाव के सिद्धांतों पर आगे बढ़ता है लेकिन यह अधिनियम कहीं न कहीं उसके इस विशेषता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
  • कुछ लोगों का यह मानना है कि संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है और प्रस्तावना में उल्लिखित धर्मनिरपेक्षता को यह अधिनियम किसी न किसी रूप में खंडित करता है क्योंकि धर्मनिरपेक्ष का अर्थ ही है कि धर्म के आधार पर किसी भी तरह का निर्णय नहीं लिया जाएगा जबकि इस अधिनियम में धर्म के आधार पर उत्पीड़न की बात की गई है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि जब भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करता है तो फिर किसी भी देश की भौगोलिक सीमा से वह ऊपर की बात करता है। इस लिहाज से देखें तो भारत को सिर्फ तीन देश ही नहीं बल्कि अपने सभी पड़ोसी देशों (चीन, म्यांमार, श्रीलंका, भूटान आदि) के साथ ही अन्य देशों के उत्पीड़ित नागरिकों का भी ध्यान देना होगा विशेषकर तमिल, रोहिंग्या आदि।
  • जानकारों का यह भी कहना है कि इसमें उत्तर-पूर्वी राज्यों की स्थिति को भी स्पष्ट नहीं किया गया है जबकि सबसे ज्यादा इस अधिनियम को लेकर अंसतोष की भावना वहीं है। वे अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामाजिक स्थिति को बचाए रखना चाहते हैं इसलिए वे बाहरी लोगों का विरोध कर रहे हैं चाहे वे हिन्दू हो या मुस्लिम। सरकार विशेष राज्य तथा अनुसूचियों में उल्लिखित प्रावधानों का हवाला देकर इस अधिनियम को पुष्ट कर रही है लेकिन उनके सामने स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है।
  • जानकारों का मानना है कि यह अधिनियम एनआरसी (NRC) के उद्देश्यों के भी खिलाफ है क्योंकि एनआरसी के तहत सरकार अवैध रूप से रह रहे लोगों को बाहर करना चाहती है चाहे वह किसी भी धर्म के हों। उसका तर्क है कि ये लोग भारतीय संसाधनों पर बोझ बढ़ा रहे हैं वहीं इस अधिनियम के तहत एक बड़ी आबादी को नागरिकता देने की बात की जा रही है जो सरकार के अपने ही वक्तव्य को अस्पष्ट करता है।
  • विद्वानों का यह भी कहना है कि शोषित तथा उत्पीड़ित लोगों को शरण देना अच्छी बात है लेकिन यह उस स्थिति में अच्छा होता है जब देश के सभी नागरिकों को भरण-पोषण अर्थात् उनकी मूलभूत आवश्यकतायें अच्छी तरह से पूरी हो रही हों। लेकिन देश के अपने ही नागरिक जब इन आवश्यकताओं से वंचित हों तो ऐसी आदर्श बातें करना थोड़ा असमंजस वाला होता है।

संयुक्त राष्ट्र और अल्पसंख्यकों के अधिकार

10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा ने मानवाधिकार को लेकर एक वैश्विक ऐलान किया। इस घोषणा में अनुच्छेद 18 को अपनाया गया। इस अनुच्छेद 18 के मुताबिक़ सभी लोगों को उसके विवेक, विचार और धर्म को लेकर स्वतंत्रता का हक़ मिलना चाहिए। इसमें धर्म बदलने की स्वतंत्रता या फिर अपने धार्मिक विश्वास के हिसाब से पूजा, पढ़ाई या अभ्यास की आज़ादी को शामिल किया गया। इस तरह परोक्ष तौर पर, अल्पसंख्यकों के अधिकार यहीं से जाहिर होते हैं।

अगर स्पष्ट तौर पर संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अल्पसंख्यकों के परिभाषा की बात करें तो इसके मुताबिक, ‘Any group of community which is economically, politically non-dominant and inferior in population।’ यानी ऐसा समुदाय जिसका सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव न हो और जिसकी आबादी नगण्य हो, उसे अल्पसंख्यक कहा जाएगा।

सच्चर समिति की रिपोर्ट

साल 2005 में न्यायाधीश सच्चर की अध्यक्षता में सच्चर समिति बनाई गई थी। इसका मकसद भारत में मुस्लिम समुदाय के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक स्तर की रिपोर्ट तैयार करना था।

  • आज़ादी के बाद से ही मुसलमानों के संदर्भ में बढ़ती आर्थिक असमानता, सामाजिक असुरक्षा और अलगाव की भावना को रिपोर्ट के ज़रिये पहली बार उजागर किया गया।
  • रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि आवास और रोज़गार के निजी क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले भेदभाव को रोका जाए। इसके लिए एक 'समान अवसर आयोग' की स्थापना की जाए। हालांकि इस पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया।
  • रिपोर्ट में निर्वाचन क्षेत्रों के अनुचित परिसीमन का भी मसला उठाया गया था। इस वजह से मुस्लिम बाहुल्य निर्वाचन क्षेत्रों से भी मुसलमानों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता है। विधानसभा में भी उनकी सीटों की तादाद कम है। हालांकि परिसीमन समिति ने इस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया।

निष्कर्ष

एक लोकतांत्रिक, बहुलवादी राजनीति में अल्पसंख्यक अधिकार बेहद ही जरूरी हैं। हाल ही में, अल्पसंख्यकों के निर्धारण से जुड़े सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले और नागरिकता संशोधन अधिनियम के बदौलत अल्पसंख्यक और उनसे जुड़े अधिकार काफी चर्चा में रहे। इतना ही नहीं, आए दिन अल्पसंख्यकों की परिभाषा और उनके निर्धारण को लेकर असमंजस की स्थिति देखने को मिलती है। इसलिए जरूरत है कि अल्पसंख्यक और उनके अधिकारों को स्पष्ट किया जाए। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाए कि भारतीय संविधान की वास्तविक भावना का उल्लंघन ना हो और महज धर्म, क्षेत्र या नस्ल के आधार पर किसी को अल्पसंख्यक ना माना जाए बल्कि इन मानकों को और भी व्यापक बनाने की जरूरत है।  साभार : कुर्बान अली एंकर राज्य सभा टीवी पूर्व  एडिटर राज्य सभा टीवी अतिथि डॉ नरेश चंद्र सक्सेना पूर्व सचिव योजना आयोग प्रोफेसर सुब्रता मुखर्जी (राजनीति विज्ञान  के जानकार) की बातचीत


 

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