इमरान को मुंबई में आए आज 3 साल हो गए थे। बड़ा नाम सुना था बड़ी शोहरत थी यहां पर बहुत पैसा है लेकिन किस्मत अपनी अपनी किसको क्या मिला यह सब इंसान के बस की बात नहीं। जो वह चाहता है उसे मिल जाए बड़ा मुश्किल है। एक आदमी के पास क्लॉथ मिल है तो कपड़ा पहनने के लिए दो आदत प्राणी है,और जिनके पास बड़ा परिवार है तो रहने को मकान नहीं, पहनने के लिए कपड़ा नहीं, दुनिया के खेल अजब और निराले हैं। खुदा ही जानता कि हम सब कुछ चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते। पैसा कमाने की चाहत ने मुझे मुंबई जाने के लिए आकर्षित किया था। 3 साल की अल्पावधि में मैं मालदार तो नहीं बन सका। लेकिन अपने खर्च के बाद में इतने रुपये घर पर भेज देता था कि घर परिवार का गुजारा हो जाए । जीवन की संघर्षशील रेलगाड़ी को मैं खींचे चले जा रहा था। एक छोटी सी घटना ने मेरे जीवन का चैन ओ सुकून छीन लिया और मैं न चाहने के बावजूद उस महिला की ओर आकर्षित होता चला गया । जहां जिस मकान में मैं रहता था वह महिला उस मकान में ही पिछले हिस्से में रहती थी मैं अक्सर आते जाते हैं उसे देख लिया करता था लेकिन मुझे उससे कोई मतलब नहीं था। मैंने सुन रखा था कि आंखों ही आंखों में प्यार हो जाता है मैं किसी भी महिला से बेझिझक बात कर लिया करता था लेकिन उस महिला से बात करने की मैं हिम्मत न जुटा पाता था न जाने क्यों मुझे उसके चेहरे की मुस्कुराहट भा गई और हर वक्त उसके मासूम खूबसूरत चेहरे की मुस्कान मेरी आंखों के सामने तैरने लगी और मैं उसकी तरफ खिंचता चला गया । एक दिन टेलीफोन पर बात करते हुए मैंने उससे प्यार का इजहार कर दिया और फिर टेलीफोन पर काफी देर तक बात होने लगी। मुझे पहली पहली बार एहसास हुआ कि इंसान के बस में कुछ भी नहीं। द
वह न चाहते हुए ऐसे रास्ते पर चल पड़ता है जहां पर उसकी मंजिल नहीं है। टेलीफोन पर बात करने पर मुझे बड़ा सुकून मिलता एक दिन अगर बात ना हो पाती तो दिल बेचैन रहने लगता । और अपने आपको ऐसा लगता जैसे मेरा कुछ खो गया हो । उसका चेहरा देखकर ऐसा महसूस होता जैसे सूखे पेड़ों की जड़ों को पानी मिल गया हो, यह सिलसिला चलता रहा और हमारी मुलाकात होने लगी और इस मिलन के सिलसिले म
ने मेरे अंदर कैसी हलचल पैदा कर दी है कि बाहर से ठीक-ठाक दिखाई देते हुए अंदर ही अंदर एक ऐसी बीमारी में मुब्तला हो गया जिसका इलाज दुनिया के किसी डॉक्टर के पास नहीं है।किसी भी काम में मन नहीं लगता, सुबह होती और शाम हो जाती ।
जिंदगी के 3 सालों में मैंने कभी मैंने ऐसा कभी महसूस ना किया था। मैं एक ऐसी दुविधा में फंस गया कि इस वक्त करूं तो क्या करूं। हालांकि मैं जानता था कि जिस महिला से मैंने इश्क लड़ाया था वह 5 बच्चों की मां थी मगर उसमें इस कदर की कशिश थी कोई यह नहीं बता पाता कि उसकी शादी हो गई होगी । उसका हुस्न देखकर ऐसा लगता था जैसे चांद जमी पर उतर आया हो। गुलाब की पखडंडियों की तरह उसके होंठ,उसके चेहरे की मासूमियत , उसके गालों की लाली देखकर लगता था जैसे जन्नत से कोई हूर जमीं पर उतर आई हो। हसीन मुस्कान, जिस वक्त वह लाल सूट पहन लेती तो गजब की हसीन लगती।साथ में उसकी मस्तानी चाल गजब ढाती । मैंने जीवन में पहली बार अनुभव किया कि प्यार वो आग है जिसमें इंसान जलता रहता है वह चाहकर भी उस आग को बुझा नहीं पाता । मुझे याद है कि जब भी मुझे उसकी याद आती तो ऐसा लगता जैसे वह मेरे सामने खड़ी हो। मैं जब घर गया तो मैंने अपनी बीवी को भरपूर प्यार दिया और उसे यह अहसास नहीं होने दिया कि मुझसे मैं कोई बदलाव आया है। लेकिन मेरी खामोशी चोरों की तरह मेरा पीछा कर रही थी और जैसे किसी चोर को अपनी चोरी पकडे जाने का भय सताता रहता है ऐसा ही कुछ हाल मेरा था। मैंने उससे कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बनाए मैं उसे दिल से चाहने लगा था। मुझे उसकी खुशी में खुशी नजर आने लगी। जीवन के कीमती वक्त को ऐसे बर्बादी के रास्ते पर लगा रहा था जहां तबाही ही तबाही है। मैं यह जानते हुए भी वह मेरी नहीं हो सकती मैं उसके प्यार में पागल था। और मैं भी दूसरी शादी नहीं कर सकता था क्योंकि मैं 6 बच्चों का बाप बन चुका था ।बच्चों की पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी और परिवार का खर्चा सभी कुछ तो मेरी कमाई से ही चलता था लोग मुझे समझदार इंसान समझते। समाज की मान मर्यादा ने मुझे काफी समझदार बना दिया था। लेकिन इस महिला के मेरी जिंदगी में आने से मेरा सब कुछ डिस्टर्ब हो गया था। 3 साल बाद एक दिन मैंने फैसला किया अब मैं उसकी शक्ल भी ना देखूंगा और वह जब भी मेरे सामने आती तो मैं उससे नजरें फेर लेता यह कर्म 3 महीने तक चलता रहा आज मुझे उससे मिले हुए 4 माह हो गए थे । उसको देखे हुए भी एक माह हो गया था। मैंने एक दिन उसे देखा तो मेरे दिल में हलचल सी मच गई। दिल में बेचैनी पैदा हो गई ।उस रात में सो न सका । चार माह से जिस प्यार को मैं भुलाने का अभ्यास कर रहा था सारी मेहनत बेकार चली गई और मैं उससे मिलने उसके पास चला गया। गिले-शिकवे दूर हुए अपने दिल का बोझ हल्का कर के वापस चला आया।
मुझे उस दिन एक बहुत बड़ा झटका लगा जब मेरे एक मित्र ने बताया कि उसके पास किसी मनोज नामक व्यक्ति का आना जाना है मनोज ने उसके पति के साथ पार्टनरशिप में काम भी शुरू किया है । और वह अक्सर उसके पति की गैरमौजूदगी में उसके पास घंटों बैठा रहता है । मैंने स्वयं जाकर देखा कि वास्तव में मनोज उसके पास बैठा था। मैंने मनोज को देखा और वापस चला आया । मेरे दिल में तूफान उठ खड़ा हुआ। एक बार मैंने उसके पति से कहलवाया कि आजकल उसकी पत्नी के पास आपकी गैरमौजूदगी में जो शख्स बैठता है उससे पूरे मोहल्ले में बदनामी हो रही है। उसके पति ने इस बात पर ध्यान ना दिया। मेरे अंदर ही अंदर एक लावा सा धधकने लगा। फिर खयाल आया कि जब उसके पति को ही परवाह नहीं है तो फिर मैं कौन होता हूं। लेकिन दूसरे पल ही दिलों दिमाग में एक विचार मंथन की आंधी सी चलने लगी और मैं आज तक नहीं समझ पाया हूँ। क्या यही प्यार है।
मैं अपने ऊपर कंट्रोल रखता हूं। वरना मैं क्या कर बैठता। एक शादीशुदा मर्द को , एक शादीशुदा औरत से इश्क लड़ाने की सजा यही है । और फिर आहें भरते रहो, मेरा दिल मानता नहीं मैं उसे बुलाना चाहता हूं लेकिन भुला नहीं पा रहा हूं मैं करूं तो क्या करूं। मैं आज भी दुविधा में हूं काश: मैंने टेलीफोन से उससे बात न की होती तो शायद न तो मैं प्यार को इजहार कर पाता, न हीं आज इस संकट में फंसता ।
दिल तो पागल है, किसी ने सच ही कहा है कुछ दिन बाद वह औरत मनोज के साथ भाग गई। और एक महीने बाद वापस आ गई । उसके पति ने उसको डांटा फटकारा और रख लिया और वह खुशी-खुशी रहने लगे । 3 साल बाद उसके पति का एक्सीडेंट हो गया । आज वह औरत बड़ी लाचार सी नजर आती है मैं जब भी उसके बारे में सोचता हूं तो मन मस्तिक परेशान हो जाता है। अब आप लोग ही बताएं क्या यही प्यार है
प्रस्तुती एस ए बेताब
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