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क्या 73 साल बाद भी हमें आर्थिक आजादी मिल पाई ?

 स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त हर साल आता है, कुछ  आयोजन होते हैं ,लाल किले पर प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं और भाषण देते हैं। हमारे न्यूज़ चैनल स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम की कुछ झलकियां दिखाते हैं, कुछ  बहस - मुबाहिसो के बाद कार्यक्रम समाप्त हो जाता है। जिस स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगों ने आंदोलन किया , जेल गए ,फांसी के फंदे पर झूले । ब्रिटिश साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी ताकि हम आजादी से जी सकें। गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारतीय समाज को आजादी की खुली हवा में जीने का हक हो, सामंतवाद, पूंजीवाद  और तानाशाही से छुटकारा मिल सके। जो ख्वाब सजाए गए थे क्या आज उन ख्वाबों को पूरा किया जा रहा है ?  इस प्रश्न का उत्तर आज भी गौण है। आजादी का मतलब यह नहीं होता कि गोरे अंग्रेज से छुटकारा मिल गया और काले अंग्रेज आ गए । क्या देश के संसाधनों पर आज भी पूंजीपतियों का कब्जा नहीं  है। आजादी तो मिली लेकिन आर्थिक आजादी आज भी नहीं मिली है। देश की संपत्ति पर 1% लोगों का कब्जा है ,लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं । उनके लिए रोटी के लाले पड़े हुए हैं। प्रवासी मजदूरों के लिए बसें थी, न रेल थी, किसी मानव का जीवन बचाने के लिए जो संसाधन काम ना आए तो वह संसाधन किस काम के । किसी गांव के जमीदार के पास कार हो और वह  सिर्फ जमीदार के ही काम आए तो उसका फायदा तो नहीं होगा बल्कि दुर्घटना में मरने का खतरा जरूर  बना रहेगा । आज देश में हालात विचित्र हैं, संपन्नता और विलासिता वाला उच्च वर्ग अत्यधिक अमीर बनता जा रहा है। वंचित और शोषित वर्ग की कोई सुनने वाला नहीं है। ऐसा लगता है कि ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी तो मिल गई लेकिन अब एक दूसरे वर्ग ने कब्जा कर लिया है और सारी संस्थाएं सारे संसाधन उसी वर्ग के इर्द-गिर्द नतमस्तक रहते हैं। वंचित और शोषित वर्ग को आजादी कब मिलेगी यह देखना बाकी है । स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजनों का वास्तविक मजा तभी आएगा जब दूरस्थ गांव के वंचित वर्ग को भी संसाधन और न्याय व्यवस्था उपलब्ध होगी।लेखक- एस ए बेताब 

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