स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त हर साल आता है, कुछ आयोजन होते हैं ,लाल किले पर प्रधानमंत्री झंडा फहराते हैं और भाषण देते हैं। हमारे न्यूज़ चैनल स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम की कुछ झलकियां दिखाते हैं, कुछ बहस - मुबाहिसो के बाद कार्यक्रम समाप्त हो जाता है। जिस स्वतंत्रता के लिए लाखों लोगों ने आंदोलन किया , जेल गए ,फांसी के फंदे पर झूले । ब्रिटिश साम्राज्य की ईंट से ईंट बजा दी ताकि हम आजादी से जी सकें। गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारतीय समाज को आजादी की खुली हवा में जीने का हक हो, सामंतवाद, पूंजीवाद और तानाशाही से छुटकारा मिल सके। जो ख्वाब सजाए गए थे क्या आज उन ख्वाबों को पूरा किया जा रहा है ? इस प्रश्न का उत्तर आज भी गौण है। आजादी का मतलब यह नहीं होता कि गोरे अंग्रेज से छुटकारा मिल गया और काले अंग्रेज आ गए । क्या देश के संसाधनों पर आज भी पूंजीपतियों का कब्जा नहीं है। आजादी तो मिली लेकिन आर्थिक आजादी आज भी नहीं मिली है। देश की संपत्ति पर 1% लोगों का कब्जा है ,लोग दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं । उनके लिए रोटी के लाले पड़े हुए हैं। प्रवासी मजदूरों के लिए बसें थी, न रेल थी, किसी मानव का जीवन बचाने के लिए जो संसाधन काम ना आए तो वह संसाधन किस काम के । किसी गांव के जमीदार के पास कार हो और वह सिर्फ जमीदार के ही काम आए तो उसका फायदा तो नहीं होगा बल्कि दुर्घटना में मरने का खतरा जरूर बना रहेगा । आज देश में हालात विचित्र हैं, संपन्नता और विलासिता वाला उच्च वर्ग अत्यधिक अमीर बनता जा रहा है। वंचित और शोषित वर्ग की कोई सुनने वाला नहीं है। ऐसा लगता है कि ब्रिटिश साम्राज्य से आजादी तो मिल गई लेकिन अब एक दूसरे वर्ग ने कब्जा कर लिया है और सारी संस्थाएं सारे संसाधन उसी वर्ग के इर्द-गिर्द नतमस्तक रहते हैं। वंचित और शोषित वर्ग को आजादी कब मिलेगी यह देखना बाकी है । स्वतंत्रता दिवस समारोह के आयोजनों का वास्तविक मजा तभी आएगा जब दूरस्थ गांव के वंचित वर्ग को भी संसाधन और न्याय व्यवस्था उपलब्ध होगी।लेखक- एस ए बेताब
(1)-पंडित पुजारी कि पार्टी काँग्रेस-BJP के नाटकीय नूरा-कुश्ती के खेल से 99% लोग अंजान है एक तरफ राहुल गाँधी भारत-जोड़ो-यात्रा का ढोंग कर रहे है तो दूसरी तरफ खडगे और शशी थरूर मे टक्कर दिखाकर खडगे (दलित) को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाकर RSS-BJP कि जननी काँग्रेस BSP/भीमवादी दलित शेरनी बहन मायावती जी को शिकस्त देने के लिए दाँव-पेंच खेली है तथा इन बुद्ध के शूद्रो पर जो आज के MUSLIM SC ST OBC वंचित हजारों कलाकार जाति पेशेवर जाति वाले कामगार-श्रमिक-मजदूर-बहुजन लोग है इन्हे राजनीति के क्षेत्र में नपुंसक व अपाहिज बनाने के लिए जबरजस्त बेहतरीन चाल भी चली है इसलिए अम्बेडकर-वादी छुट भैये अवसर-वादी निकम्मा न बनकर 'भीमवादी-बनो' बहुजन हसरत पार्टी BHP कि बात पर तर्क करो गलत लगे तो देशहित-जनहित मे माफ करो* *(2)-जब-जब BSP को तोड़ा गया तब-तब Muslim Sc St Obc बुद्ध के शूद्र वंचित हजारों कलाकार जाति पेशेवर जाति वाले कामगार-श्रमिक-मजदूर-बहुजन लोगो ने उसके अगले ही चुनाव में BSP को 3-गुना ज्यादा ताकतवर बनाकर खड़ा किया है जैसे-1993/1995/1997 व 2002-03 में BSP को अ-संवैधानिक तरीके से तोड़कर समाजवादी पार्टी व BJP...
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