जु़ल्म पर जुल्म किए जा रहा है
सच को सच बताया जा रहा है
कब तक बच पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
मजबूरो बेबसों को हक़ दिलाया जा रहा है
सूनी आंखों में खुशी लाए जा रहा है
सोच ले नहीं ऐसा तू कर पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
बेईमानी के दौर में ईमानदारी निभा रहा है
बच्चों को आज भी सरकारी स्कूल में पढ़ा रहा है
डॉक्टर नहीं तू बना पाएगा
दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
रिश्तेदारों को भी चटनी खिला रहा है
पेप्सी के दौर में शरबत पिला रहा है
मालदार नहीं तू बन पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
खिदमत खल्क किए जा रहा है
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारे जा रहा है
मुश्किल है नहीं संभल पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
डूबते हुए जहाज को बचाए जा रहा है
पुरानी दोस्ती को निभाए जा रहा है
सोच ले डूबते जहाज को नहीं बचा पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
टॉप स्कर्ट के दौर में सलवार कमीज पहना रहा है
शर्म ओ हया औरआबरू को बचाए जा रहा है
सोच ले तरक्की नहीं कर पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
गुलामी के दौर में आजादी दिखा रहा है
वादा करके वादा निभाए जा रहा है
सोच ले वादा नहीं निभा पाएगा
एक दिन फांसी के फंदे पर चढ़ जाएगा
लेखक - एस ए बेताब
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें