कोई फांसी लगाकर मर जाता है
कोई सरकार से लड़ जाता है
देखी नहीं जाती ऐसी अय्यारी
यहां नस-नस में भरी है मक्कारी
भ्रष्टाचार को लगाम दे दो
किसानों को वाजिब दाम दे दो
हमारी सुबह शाम दे दो
बेकारों को काम दे दो
डायर का नहीं राज चलेगा
बेईमानी का नहीं काज चलेगा
फरेबी से नहीं काम चलेगा
होठों पर नहीं जाम चलेगा
हमारी सुबह शाम दे दो
बेकारों को काम दे दो
भूख से नहीं अब कोई और मरेगा
कमजोरो का भी जो़र चलेगा
बेताजो को ताज दे दो
हमको यह राज दे दो
हमारी सुबह शाम दे दो
बेकारों को काम दे दो
राम रहीम का नाम ले लो
प्यार मोहब्बत से काम ले लो
बेकसों का साथ दे दो
बेकशो को हाथ दे दो
हमारी सुबह शाम दे दो
बेकारों को काम दे दो
सूफी हो या संत
सबको मिलेगा अन्न
राजा हो या रंक
सब रहेंगे एक संग
हमारी सुबह शाम दे दो
बेकारों को काम दे दो
लेखक- एस ए बेताब
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