तीन दिन से भूखी एक मां
बच्चे तड़प - तड़प कर रो लेते
कभी पानी में रोटी, कभी रोटी में पानी
कभी सो लेते, कभी आंखें भिगो लेते
यही सोच कर रह जाती अबला नारी
के वक्त ने बनाया मुझे भिखारी
गोदामों में अनाज सड़ता है
यहां गरीब की कौन सुनता है
बच्चों की भूख देखी नहीं जाती
अंधियारा दूर करूं, कहां से लाएं तेल बाती
जीवन होता है बड़ा प्यारा
कौन बनेगा बच्चों का सहारा
जीवन का दीप बुझा दूं
सरकार तक खबर पहुंचा दूं
यही सोच कर रह जाती हूं
अंदर ही अंदर घुट जाती हूँ
लगता है मर कर भी जाऊंगी
मगर डरपोक कहलाउंगी
काम लगता नहीं, उधार मिलता
नहीं कैसे कटेगी जिंदगानी
उनका पसीना भी खून
हमारा खून भी पानी
अजब है दुनिया का दस्तूर
कोई तो बताए मेरा कसूर
कई दिनों से पड़ा है
मेरा छप्पर उठवा दो
मुझको इंसाफ दिला दो
मुझको सूली पर चढ़ा दो
लेखक- एस ए बेताब
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