मैं खो जाता हूं भूली बिसरी यादों में
तनहाई की उन प्यार भरी मुलाकातों में
मुझे याद आता है गांव का वह सपना
चौपाल पर लगी भीड़, जहां लगता था मजमा
दादा की लाठी पकड़ कर उन्हें घर तक पहुंचाना
सुखिया की देखभाल,नरगिस को मरहम लगाना
मुझे याद आती है वह लहलाती फसलें
मुझे याद आती है पंडित जी की पढ़ाई
मुझे याद आती है शिवाले की शंखनाद
मुझे याद आती है मौलवी साहब की अजान
मुझे याद आती है अमित - अकबर के झगड़े की दास्तान
जहां खिचती थी रोज कमान
कुश्ती में होती थी दोनों की टक्कर
कबड्डी में चकमा देने का चलता था चक्कर
पंडित,मौलवी दोनों बैठते थे साथ
घंटो करते थे प्यार भरी बात
सद्भाव की है एक अजब की मिसाल
सुखमय, वातावरण सारा गांव था खुशहाल
जब होती थी बरगद के पेड़ की छांव
वहां आ जाता था आधा गांव
झोपड़ी में लगी आग बुझाने आते थे सभी पड़ोसी
रहमान की बेटी होती थी राम की पोती
यह कैसा बदलाव आया है मेरे गांव में
अमरीका का सामान आया है मेरे गांव में
बरगद के पेड़ की डाली सूख गई
शर्म ओ हया की लाली सूख गई
शर्मीली दुल्हन अर्धनग्न नज़र आती है
मौसम से पहले फसल पक जाती है
बिन बरसात के होती है यहां रिमझिम
जादूगर कहता है खुल जा सिम-सिम
सूखे से यहां कई मौतें हो जाती हैं
तकरार अब हिंदू मुस्लिम में बदल जाती है
मैं खो जाता हूं भूली बिसरी यादों में
तनहाई की उन प्यार भरी मुलाकातों में
लेखक - एस ए बेताब
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