सारे जमाने में बदनाम है हम
सरे बाजार खड़े हैं बे दाम है
हाथों में हमारे जादू है
फिर भी बे काम है हम
नहीं चलता बिन हमारे काम यहां
फिर भी रुसवाईयों के नाम है हम
गफलत ने हमारी बर्बाद किया है
सीखी नहीं सियासत नाकाम है हम
किससे कहें कैसे कहें अपनी दास्तां
कोई नहीं अपना बेलगाम है हम
कल भी सूरज गुजरेगा इन सेहराओ से
अंधियारो मत रोको , नूर की शाम है हम
लेखक - एस ए बेताब
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