लेखक - एस ए बेताब
क्या जमाना है क्या लोग हैं
अजीब दौर है अजीब लोग हैं
अपने ही आंगन में पत्थर फेंकने वालों
दूसरे के गिरेबाँ में झांकने वालों
बाहर निकल कर भी देखो
एक ही लठ से हांकने वालो
ना डरने वालों को भी खौफ है
अजीब दौर है अजीब लोग हैं
आग उगलने वाला सूरज
बादलों से गिड़गिड़ा रहा है
कल तक जो अकड़ था था आज
अपने किए पर पछता रहा है
लोगों के अपने - अपने शौक हैं
अजीब दौर है अजीब लोग हैं
जिंदगी भी एक कहानी है
चलती हुई रवानी है
मत देखो इन खूबसूरत हवाओं को
यह बहार तो आनी जानी है
दिलकश अदा दिलकश लोग हैं
अजीब दौर है अजीब लोग हैं
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