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मौलाना अबुल कलाम आजाद भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री

 मौलाना अबुल कलाम आजाद , भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री



मौलाना अबुल कलाम आजाद 
संसार के मुस्लिम मिल्लत के इतिहास में मौलाना अबुल कलाम आजाद को एक प्रमुख स्थान प्राप्त है। अपने प्रारंभिक जीवन में वे एक अच्छे विद्वान और इस्लामी एकता के समर्थक थे। उन्होंने यहां तक कहा कि संसार के मुस्लिम समुदाय की समस्याएं केवल विश्व इस्लामिक समुदाय के तालमेल से ही हल हो सकती हैं तथापि ऐसा कोई आंदोलन जो केवल संसार के मुसलमानों तक सीमित हो लाभदायक नहीं होगा। उनकी साप्ताहिक पत्रिका अल हिलाल अत्यंत साहित्यिक भाषा से युक्त होती थी ।जिसके अंदर अरबी और फारसी शब्दों का मेल अधिक होता था। इसलिए इसे अधिकतर शिक्षित व्यक्ति ही पढ़ते थे। इसने अपने पाठकों में इस्लामी मैत्री की भावना उत्पन्न करने में मुख्य भूमिका निभाई। उन्होंने अंग्रेजी भाषा की शिक्षा अपने बहुत बाद के जीवन में प्राप्त की ।वे आधुनिकता की सर सैयद अहमद खां की नीति से सहमत नहीं थे। सर सैयद अहमद की राजनीति उन्हें और भी अधिक अप्रिय थी। क्योंकि देवबंदी विचारधारा के विद्वानों की भांति वह भी इस्लाम की सभी घटनाओं का उत्तरदाई अंग्रेजी सरकार को ही समझते थे । भारत और कांग्रेस के लोकप्रिय नेता, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के एक से अधिक बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। पूरा जीवन अंग्रेजी शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम में व्यतीत कर दिया। कई बार जेल गए।

 मौलाना आजाद के कॉल फैसल की 



जब्ति

मुंबई 19 दिसंबर 1922 दोपहर सीआईडी स्पेक्टर दाऊद खां एक दर्जन सिपाहियों के साथ जो कि सीआईडी के थे, तलाशी का वारंट लेकर आया । वारंट मिस्टर धनवार एडिशनल प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट की ओर से जारी हुआ था कि पुस्तक कौले फैसल को जब्त कर लिया जाए और एक इस पुस्तक को बंगाल सरकार ने जब्त कर लिया ।वास्तव में यह कोई पुस्तक नहीं अपितु मौलाना आजाद के उस वार्तालाप पर आधारित है जो उन्होंने अपने मुकदमे में प्रस्तुत किया था। आश्चर्य की बात यह है कि 1 वर्ष बाद बंगाल सरकार की आँख इस पुस्तक के बारे में खुली । पुलिस इस पुस्तक की 25 प्रतियां अपने साथ ले गई। 28 फरवरी 1922 को चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट ने 1 वर्ष की कैद की सजा सुनाई । मौलाना ने इस आदेश को अत्यंत प्रसन्नता से सुना और उत्तर दिया यह मेरी आशा से कम है। 1939 से 1946 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहे। जब अगस्त 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बजा तो कांग्रेस कमेटी के सभी सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए। वर्किंग कमेटी के सभी सदस्यों को नजरबंद कर दिया गया। अहमदनगर के किले मैं नजर बंद कर दिया गया। अहमदनगर के इस किले को देखने का अवसर इस पुस्तक के लेखक को भी मिला। यहां हर कमरे में जिसमें जो नजरबंद था उसकी तस्वीर लगी हुई है। जिससे कि उस जगह आने वाले लोगों को पता चलता रहे । जवाहरलाल नेहरू, कृपलानी और मौलाना आजाद के कमरे में फोटो लगे हैं। मौलाना आजाद के कमरे को देखने के बाद "गुबारे खातिर" के सभी दृश्य आंखों के सामने आ गए । आपके नेतृत्व काल में अंग्रेजों से शासन स्थानांतरण के बारे में निश्चय किया गया । आप शिमला  conference के हीरो थे। फिर विधानसभा के सदस्य भी रहे । स्वतंत्रता के बाद आपको केंद्र में शिक्षा मंत्री का पद सौंपा गया । शिक्षा के विभाग में पूरी रुचि के साथ कार्य किया और आज भी भारत की शिक्षा व्यवस्था मौलाना आजाद के प्रस्ताव के अनुसार अपना कार्य कर रही है "तर्जुमाननुल कुरान" कुरआन उनका अद्भुत अनुवाद है ।और दिल्ली के जामा मस्जिद के सामने वाले पार्क में दफन है । 
आजाद अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ थे। उन्होंने अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेवार ठहराया। उन्होंने अपने समय के मुस्लिम नेताओं की भी आलोचना की जो उनके अनुसार देश के हित के समक्ष साम्प्रदायिक हित को तरज़ीह दे रहे थे। अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ कर दिया। उन्होंने ईरान, इराक़ मिस्र तथा सीरिया की यात्राएं की। आजाद ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना आरंभ किया और उन्हें श्री अरबिन्दो और श्यामसुन्हर चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों से समर्थन मिला।

आज़ाद की शिक्षा उन्हे एक दफ़ातर (किरानी) बना सकती थी पर राजनीति के प्रति उनके झुकाव ने उन्हें पत्रकार बना दिया। उन्होने 1912 में एक उर्दू पत्रिका अल हिलाल का सूत्रपात किया। उनका उद्येश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलनों के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था। उन्होने कांग्रेसी नेताओं का विश्वास बंगाल, बिहार तथा बंबई में क्रांतिकारी गतिविधियों के गुप्त आयोजनों द्वारा जीता। उन्हें 1920 में राँची में जेल की सजा भुगतनी पड़ी।

स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया। मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' अर्थात 'आई.आई.टी.' और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' की स्थापना का श्रेय है। उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।

  1. संगीत नाटक अकादमी (1953)
  2. साहित्य अकादमी (1954)
  3. ललितकला अकादमी (1954)

केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की। मौलाना अबुल कलाम आजाद को मरणोपरांत 2012 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया

 प्रस्तुति एस ए बेताब संपादक बेताब समाचार एक्सप्रेस हिंदी मासिक पत्रिका एवं यूट्यूब चैनल

E:mail:betabsamachar@gmail.com

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