आजादी के 70 वर्षों बाद भी समाज के कुछ तबके आज भी ऐसे हैं जो अपने आप को उपेक्षित,वंचित और शोषित मानते हैं।उनका मानना है कि उन्हें न्याय नहीं मिलता है। जहां अन्य मामलों में दूसरे लोगों के साथ न्याय मिलता है तो शोषित और वंचित लोगों को न्याय नहीं मिलता है। इन्हीं में से एक तबका अल्पसंख्यक समुदाय का है वैसे तो अल्पसंख्यक समुदाय में 6 समुदाय आते हैं जिसमें मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन पारसी है। मुस्लिम समुदाय का मानना है कि आजादी से लेकर अब तक उनके साथ अन्याय होता रहा है। कई बार अधिकार तो प्राप्त हो जाते हैं, लेकिन न्याय के मामले में आज भी वह अपने आप को उपेक्षित महसूस करते हैं। न्यायिक प्रक्रिया की बात की जाए तो जो ढांचा है और जो विधिक प्राधिकरण है, उसमें न्याय पाने के लिए जिस तरह की समझ बूझ की जरूरत है क्या यह समुदाय उस तरह की समझ बूझ नहीं रखता है ? क्या इस समुदाय के साथ न्याय प्रक्रिया में देरी होती है? या फिर अन्य ऐसे कारण है जिससे इसे ऐसा लगता है कि उसे न्याय नहीं मिला है? न्याय प्रक्रिया और न्याय पाना दोनों पर जब गहराई से गौर किया जाएगा तो बहुत सारी बातें निकल कर सामने आएंगी। जिसके बारे में फिर किसी लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे। यहां हम आज अल्पसंख्यक समुदाय के राजनीतिक सशक्तिकरण पर बात करना चाह रहे हैं ।राजनीतिक सशक्तिकरण की बात चलती है दो बातें सामने आती हैं एक किसी भी समुदाय का शिक्षित होना दूसरे उसका जागरूक होना, यदि यह दो बातें किसी समुदाय में नहीं है तो उसके राजनीतिक सशक्त होने में बहुत सारी रुकावटें पैदा हो जाती है। मुस्लिम समुदाय के राजनीतिक सशक्तिकरण की बात की जाए तो हम जब भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर गौर करते हैं तो यह बात कहने और सुनने में बहुत अच्छी लगती है और बहुत आसान दिखाई देती है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पार्टी बना कर ,अपना दल बनाकर किसी भी सदन में पहुंच सकता है। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। आज हम राजनीतिक सशक्तिकरण पर दृष्टि डालते हैं। वर्तमान समय में मुस्लिम समुदाय का एक दल जिसे ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन कहते हैं उभरता हुआ दिखाई दे रहा है ।टीवी, सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया में आज जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है तो वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की । ओवैसी ने बिहार विधानसभा चुनाव में पांच विधायक जीता कर अपनी दावेदारी और अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को आगे बढ़ाने का काम किया है। ओवैसी साहब अपनी पार्टी का विस्तार करने के लिए पिछले 15 वर्षों से काफी सक्रिय नजर आते हैं। लोकसभा में जब भी अल्पसंख्यक समुदाय, दलित समुदाय ,वंचित समुदाय, से संबंधित मुद्दा होता है तो उस मुद्दे पर ओवैसी साहब प्रखरता के साथ सदन में अपनी बात रखते हैं। और यही वजह है की सदन में ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार प्रकट करने से ओवैसी साहब कभी नहीं चूकते हैं। यूं तो आज भी अगर मुस्लिम नेतृत्व वाले दलों और पार्टियों की बात की जाए तो ऑल इंडिया मुस्लिम लीग, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट नेशनल काँंफ्रेंस, पीडीपी, (peoples democratic party )जैसी पार्टियों के लोकसभा में सांसद हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि क्या यह पार्टियां मुस्लिम विषय पर संसद में बहस करती हैं अपनी बात मजबूती के साथ रखती हैं या नहीं। आज मुस्लिम समुदाय के वोटों को प्राप्त कर सेकुलर पार्टियां और उनके नेता कई मुद्दों पर लोकसभा राज्यसभा या फिर जनता के बीच में भी बात करने से कतराते हैं । क्योंकि उन्हें डर होता है यह मुद्दा कहीं भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टियों के लिए फायदेमंद ना हो जाए और उनका वोट बैंक ना खिसक जाए। दिल्ली देश की राजधानी है और यहां पर उत्तर पूर्वी जिले में 24, 25, से 26 फरवरी को जो दंगे हुए और उस दंगों में मुस्लिम समुदाय ने अपने आपको ऐसा असुरक्षित महसूस किया। दंगों का वह समय वीभत्स एवं अमानवीय था जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। देश की राजधानी में इस तरह के हालात उत्तर पूर्वी जिले ने इससे पूर्व कभी नहीं देखे थे। 1984 के वीभत्स दंगों की बात करें तो भी उत्तर पूर्वी दिल्ली में इस तरह के हालात नहीं थे। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में हुए दंगों पर जिस तरह की राजनीति अपनाई वह बड़ी अफसोस नाक है। दिल्ली की 80% गरीब वंचित शोषित जनता ने केजरीवाल को अपना वोट दिया और इसमें 15 परसेंट मुस्लिम आबादी ने भी केजरीवाल को अपना वोट दिया यही कारण रहा कि कांग्रेस जो 15 साल तक सत्ता में रही मुस्लिम समुदाय के छिटक जाने के कारण जीरो पर आ गई।
बिहार में ए आई एम आई एम की 5 विधानसभा सीटें आने के कारण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस बात का डर सता रहा है कि कहीं मुस्लिम समुदाय आगामी चुनाव में उससे दूर न चला जाए इसलिए केजरीवाल की चिंताएं बढ़ गई हैं। दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 15 विधानसभा सीट ऐसी है जिन पर मुस्लिम समुदाय काफी असर रखता है और इन सीटों को जीत हार में बदल सकता है। 7 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जिन्हें मुस्लिम समुदाय जीत सकता है। और 8 विधानसभाओं को दूसरों मतदाताओं के साथ मिलकर जीत और हार का खेल रच सकता है। मुस्लिम समुदाय के बुद्धिजीवी वर्ग का मानना है कि शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक भागीदारी केजरीवाल सरकार में प्राप्त नहीं हो रही है। दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों में से केजरीवाल सरकार ने मुस्लिम समुदाय के एक भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया था राज्यसभा की 3 सीटों में से किसी भी मुस्लिम को राज्यसभा में नहीं भेजा जबकि कांग्रेस एक मुस्लिम को हमेशा राज्यसभा में भेजती रही है। राज्यसभा में भेजकर कांग्रेस मुस्लिम राजनीतिक 0 को दूर करती थी लेकिन केजरीवाल सरकार ने तो यहां भी मुसलमानों की उपेक्षा की। यदि केजरीवाल सरकार ने मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए ठोस कदम ना उठाएं तो आगामी चुनाव में केजरीवाल को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। विकास और न्याय प्रक्रियाओं को पूर्ण रूप से अपनाए बिना कोई भी दल किसी भी समुदाय के साथ न्याय ही नहीं कर सकता है और यह दोनों पैमाने सत्ता में आसीन दलों को अपनाने चाहिए। उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों में जिन लोगों का माल लूट लिया गया, कारखाना जला दिया गया, जिस व्यक्ति का एक करोड़ रुपए का नुकसान हुआ उसे 3 या 5 लाख की आर्थिक सहायता देना ऊंट के मुंह में जीरा देने के बराबर है। जिस तरह 1984 के सिख दंगा पीड़ितों को पैकेज दिया गया है उसी तरह उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगा पीड़ितों को भी दिल्ली सरकार को पैकेज देना चाहिए।
प्रस्तुति - एस ए बेताब (संपादक : बेताब समाचार एक्सप्रेस) हिंदी मासिक पत्रिका एवं यूट्यूब चैनल
Very true information
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