आजादी के मतवाले (52)
सन1857
दीवाने उठे दारो- रसन को चूमा
परवाने उड़े शमे वतन को चूमा
क्या शोके़ं शहादत था कि जानँबाजों ने
सर रख के हथेली पे कफन को चूमा
संसार के सभी क्रांतिकारी आंदोलनों की शुरुआत किसी खास हादसे घटना से नहीं होती ।आमतौर पर होता यह है कि छुपे हुए तल के नीचे विस्फोटक पदार्थ जमा होता रहता है और फिर किसी मामूली सी चिंगारी से भड़क उठता है। फ्रांस और अमरीका में क्रांतिकारी आंदोलन शुरू -शुरू में ऐसी ही मामूली घटनाओं से हुआ। लेकिन थोड़े समय में बेचैन और दबे हुए तत्व छलक कर ऊपर आ गए और वह फिर सारे वातावरण में छा गए। यही रूप 1857 की क्रांति में देखने को मिलता है ।कारतूसो का तो सिर्फ एक बहाना था जिसने 100 साल की बेचैनी को उभार दिया और अंग्रेजों के खिलाफ लोगों की भावना में कोलोहल पैदा हो गया। अंग्रेजों और अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध एक लंबे समय से लोगों के दिलों में घृणा पैदा हो गई थी ।भारतीय सिपाहियों ने आगे बढ़कर अंग्रेजों से बदला लेने के लिए 1857 के आंदोलन में भाग लिया। वह खुद अंग्रेजों की नाइंसाफी के बर्ताव से तंग आ चुके थे।
सर जॉर्ज बारलोन सिपाहियों के तिलक लगाने, दाढ़ी रखने और पगड़ी बांधने पर बहुत ज्यादा नाराज होते थे। भारतीय फौजियों से जो वादे किए जाते उनको कभी भी पूरा नहीं किया जाता था। जिसकी वजह से उनमें घृणा पैदा हो चुकी थी ।भारतीय सिपाहियों और अंग्रेजी सिपाहियों के वेतन में भारी अंतर था ।इन सिपाहियों को चंद आने से ज्यादा नहीं मिलते थे। और इससे भी बढ़कर यह बात थी कि अंग्रेजों ने हिंदुस्तान में अपने धर्म ईसाइयत के प्रचार का काम भी शुरू कर दिया था । इसके अतिरिक्त अंग्रेज सरकार देशी रियासतों, रजवाड़ों को अपनी सरकार में सम्मिलित करने के लिए बेईमानी, धोखाधड़ी और जोर-जबर्दस्ती का हथकंडा प्रयोग करने लगी थी ।जिसके कारण हजारों व्यक्ति जिनका लगाव रजवाड़ों से था ,निस्सहाय हो गए ।विशेष कर अवध की सरकार को जब अंग्रेजों ने अपनी सरकार में मिलाया तो लोगों की नफरत चरम सीमा पर पहुंच गई ।सर सैयद अहमद खान लिखते हैं विदेशी चीजों की खपत के कारण भारत के कल कारखानों में काम करने वाले लोगों का रोजगार समाप्त होने लगा । भारत के सुनार और दियासलाई बनाने वालों को कोई नहीं पूछता था। बुनकरों का तो तार धागा बिल्कुल टूट चुका था ।आर्थिक बदहाली के कारण हिंदू मुसलमान मजदूर ,किसान, सिपाही जागीरदार और शाही खानदान के लोगों की दयनीय स्थिति थी । इन सब कठिनाइयों के कारण इंकलाब का वातावरण बिल्कुल तैयार था ।ऐसे समय में नएकारतूसो के प्रयोग का आदेश सिपाहियों को दिया गया। इन कारतूसो पर चिकनाई के लिए गाय और सुअर की चर्बी लगी होती थी और इनको दांतो से दबाकर खींचना और भरना पड़ता था। इसने हिंदुस्तानी सिपाहियों को उत्तेजित कर दिया और उन्होंने यह सब समझ लिया कि यह एक तरह से हिंदू मुस्लिम धर्म पर अंग्रेजों द्वारा हमला कर दिया गया है । इससे उनके जज्बात को ठेस पहुंची।
1 मई को मेरठ में सिपाहियों ने इन कारतूसो के प्रयोग से इंकार कर दिया । 10 मई को मेरठ छावनी में विद्रोह हो गया । अंग्रेजों को जब इस घटना के बारे में पता चला तो वह क्रोध से पागल हो गए । इन 90 सिपाहियों में से 85 सिपाहियों को जिसमें हिंदू मुसलमान दोनों थे। को नंगे पाव तेज धूप में परेड कराई गई और 10 - 10 साल की कड़ी सजा दी गई ।दूसरे दिन कुछ और सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया । उन्होंने यूरोपियन अफसरों को मारकर अपने साथियों को छुड़ा लिया और दूसरे दिन दिल्ली की ओर चल पड़े ।
10 मई की रात को कर्नल फिरोज को मेरठ में विद्रोह का पता चला दूसरे दिन सुबह 8:00 बजे मेरठ के विद्रोही सिपाही यमुना का पुल पार करके दरियागंज पहुंच गए यह क्षेत्र संपन्न लोगों का था या जो भी अंग्रेजों की सहायता के लिए आया उनके घरों को लूट लिया गया। कर्नल फिरोज और डग्लस विद्रोहियों के हाथों मारे गए। 11 मई को बैरक नंबर 38 और 74 के फौजी दस्तों ने विद्रोह कर दिया । दफ्तरों को आग लगा दी जेल के दरवाजे खोलकर अपने बंदियों को आजाद करा लिया। बहादुर शाह जफर 1837 में दिल्ली के तख्त पर बैठे उनकी आयु 82 वर्ष से अधिक हो गई थी। देश की बिगड़ती दशा महल के कामकाज और बुढ़ापे ने उन्हें और कमजोर कर दिया था । जब मेरठ और दिल्ली के विद्रोहियों ने बहादुर शाह जफर को दिल्ली की गद्दी और राजपाट संभालने को कहा तो बादशाह ने उत्तर दिया मैं बूढ़ा और कमजोर आदमी हूं मेरा जीवन किले की चारदीवारी तक ही सीमित है । मुझे अपने हाल पर रहने दो। परंतु सिपाहियों ने उनकी एक न मानी और बादशाह को राजपाट संभालने पर मजबूर कर दिया । मेट्काफ को जब यह मालूम हुआ तो उसने यह कोशिश की कि यमुना के पुल को उड़ा दिया जाए ।इसलिए कि तोपों का वहां ले जाना कठिन था विद्रोही सिपाही मैगजीन और हथियारों के भंडारों पर कब्जा करना चाहते थे। अंग्रेजों ने इस मैगजीन को स्वयं आग लगा दी। इस घटना में पांच अंग्रेज और कुछ भारतीय सिपाही हताहत हुए।
12 मई को बादशाह ने जुलूस चांदनी चौक में निकाला गया। बादशाह ने दुकानदारों से कहा कि वह अपनी दुकान खोलें। 13 मई को 50 अंग्रेज सिपाही पकड़े गए और उन्हें गोली से उड़ा दिया गया। 24 मई को अंग्रेजों ने मेरठ से ताजा फौज मंगाई। हिंडन नदी पर विद्रोहियों और अंग्रेजो के बीच घमासान युद्ध हुआ यहां विद्रोहियों की कमान बहादुर शाह जफर के पोते मिर्जा मुगल कर रहे थे ।दूसरा मोर्चा गाजियाबाद में हुआ ।इस बीच ब्रिटिश फौज ने नदी को पार कर लिया और विद्रोहियों को पीछे धकेल दिया ।यह अंग्रेजों की प्रथम सफलता थी। अगले
प्रस्तुति एस ए बेताब संपादक (बेताब समाचार एक्सप्रेस) हिंदी मासिक पत्रिका एवं यूट्यूब चैनल
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