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"की टुकटुक - बिहार मा चुनाव छः! "


 

            मुझे बगैर टीवी देखे यकीन हो गया कि बिहार को स्वर्ग से सुंदर बनाने के दिन आ गए । अब बिहार में दरवाज़ा खटखटा कर लोगों को नौकरी दी जायेगी, - बड़ी दूर से आए हैं ' हाथ में लड्डू लाए हैं ' ! कोई दस लाख नौकरी लाया है, तो कोई उन्नीस लाख़ ! ( जाने आज तक किस गोदाम में संभाल कर रखी थीं !) लोग दुर्दिन के लिए ही तो बचा कर रखते हैं ! कोरोना में छीनकर लॉकर में रख दिया था, अब चुनाव में काम आएंगी ! कई पार्टियां सकते में हैं ! इतनी सारी नौकरिया इन दोनों ने बांट दी, अब मै क्या बांटू ! झोले में रखी जन्नत में दीमक ना लग जाए !
                पूरे अड़सठ साल में जहां जहां सड़क नहीं बन पाई थी, अब आठ हफ्ते में लाकर वहां सड़क रख रख दी जायेगी ! सड़क होगी तभी तो विकास गाँव तक पहुंचेगा ! ( जहां सड़क नहीं है, विकास ग्राम प्रधान के घर से आगे जाता ही नहीं !) सड़क कितनी ज़रूरी है, ये तो अप्रैल और मई में ही पता  चल गया था जब लॉक डॉउन में पूरे देश के मज़दूर शहरों से पैदल ही गांवों को चल पड़े थे ! सड़क बहुत ज़रूरी है ताकि शहर से गांव तक पैदल आने में असुविधा न हो ! ( रहा कोरोना , तो प्राकृतिक आपदा का इलाज तो अमेरिका और रूस के पास भी नहीं है ! यही क्या कम है कि  "वैक्सीन" ना होते हुए भी हम फ्री देने जा रहे हैं!)
            जिसके गुल्लक में ज़्यादा चैनल है, वो चुनाव से पहले जीत रहा है! जिसके पास नहीं है वो मतगणना का इंतज़ार करेगा ! साम दाम दण्ड भेद का इस्तेमाल कर हवा बनाई जा रही है ।वोटर अपने विधान सभा की सर्वे रिपोर्ट सुनकर सकते में हैं कि जनता तो विरोध में है , फिर ये किसके वोट से जीतते नजर आ रहे हैं ! हर दिन एक सर्वे आ रहा है, रोज के रोज बिहार सुशासन और विकास के कारण जापान से आगे जा रहा है ! जनता की सांस फूल रही है , इतना विकास सम्हाले कैसे ! हालांकि बगल झारखण्ड और बंगाल बेहाल हैं, पर उनके लिए अभी  "कृपा " रूकी हुई है !
         वैसे विकास बांटने में केजरीवाल जी अभी भी प्रथम स्थान पर बने हुए हैं! पानी और बिजली इतना बांटा की दिल्ली अभी भी सदमे से उबर नहीं पाई !. बीच में पानी बिजली छोड़ कर मरकज में जाकर कोरोना भी बांट आए । अब उन्हें लगा कि  सही विकास तो यही है। फिर क्या था, उन्हें सत्य का ज्ञान हो गया और  " ईश वाणी " भी सुनाई देने लगी थी कि दिल्ली दंगो का मास्टर माइंड कौन है ! तब से आजतक वो जब भी विकास करना चाहते हैं, कोरोना उनका हाथ पकड़ लेता है !
       चुनाव ना आए तो कभी पता न चले कि जनता ने पिछले ५ साल में कितना "सुशासन" भोगा है! चुनाव में ही पता चलता है कि हंस कौन है और कौआ कौन ! तो,,, नए नए खुलासे हो रहे हैं ! कई तारणहार धोती में गोबर लगाए गलियों में आवाज़ लगाते घूम रहे हैं, -' सोना लै जा रे ! चांदी लै जा रे !" कोई पैर में कीचड़ लगाए आवाज़ लगा रहा है, "  ये  ' हाथ ' हमे दे दे ठाकुर "! कोई स्लोगन दे रहा है , " लालटेन फिर आई है !
                          बिजली तो हरजाई है !!"
         पढ़े लिखे बेरोजगार को अब कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है! घर बैठे पंद्रह सौ की पेंशन लें और मछली उद्योग में मन लगाएं! चुनाव से पहले जितनी जन्नत बटोरनी हो बटोर लो ! चुनाव के बाद - ढूंढते रह जाओगे ! नक्सल और बाढ़ एक बड़ी समस्या है! नक्सल विपक्ष की देन है और बाढ़ विधाता की ! दोनो को जीतने के बाद ही सबक सिखाया जायेगा !  तब तक,,,,,

       रुकावट के लिए खेद है !!
 मेहमान लेखक : सुल्तान भारती
 

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