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जिन्ना ने क्यों कराया भारत का विभाजन






 जिन्ना का भारत विभाजन की ओर पहला कदम। सन 1937 ईस्वी के अक्टूबर माह में लीग का अधिवेशन लखनऊ में होना था, उस दौरान जिन्ना की तबीयत कुछ अधिक ही खराब 
थी उन्हें जबरदस्त खांसी की शिकायत थी, दरअसल उनके फेफड़े खराब हो चुके थे।  ऐसी स्थिति में भी जिन्ना 13 अक्टूबर सन 1937 ई.   की शाम को लखनऊ पहुंचे। स्टेशन पर खलीकुलज्जमा और महमूदाबाद ने लीग के कार्यकर्ताओं के साथ जिन्ना का स्वागत किया ।और भारी जुलूस निकाला। इसी दौरान एक स्थान पर लीग के कार्यकर्ताओं से कुछ गर्म मिजाज कांग्रेसियों की झड़प हो गई । लखनऊ पहुंचकर जिन्ना ने पंजाब के सर सिकंदर हयात खान से भेंट की, और उनकी शक्तिशाली यूनियनिस्ट पार्टी को लीग में मिलाने की शर्तें भी सुनी। जिन्ना ने तहे दिल से उनकी शर्तों का स्वागत किया । उस दिन फजलुल हक ने भी लीग का साथ देने का निर्णय लिया था जिससे दक्षिण एशियाई मुसलमानों के निर्माणाधीन राज्य में एक पूर्वी शाखा भी जुड़ गई। 
 शाम होते-होते जिन्ना समझ गए कि उन्होंने दूसरे लखनऊ करार को जन्म दिया है।वह  पूरे दक्षिण एशिया को विभाजित कर देगा।उस   रोज  जिन्ना काफी जोश में थे। उन्होंने लखनऊ अधिवेशन के लिए एक खास पोशाक का चुनाव किया था। जो उनकी छवि से स्थानीय रूप से जुड़ गई। 15 अक्टूबर सन 1937 ईस्वी को उन्होंने लंबी पंजाबी शेरवानी पहनी  और सिर पर इरानी भेड के चमड़े से बनी टोपी पहनी।
 भविष्य में यह टोपी जिन्ना टोपी के नाम से प्रसिद्ध हो गई  । इस पोशाक को पहनकर जिन्ना ने लीग के लखनऊ अधिवेशन  की अध्यक्षता की।  राजा महमूदाबाद के बाग में देशभर के प्रांतों से 5000 मुसलमान प्रतिनिधि आकर जमा हुए। जिनके सामने जिन्ना ने कहा " अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का यह अधिवेशन इस पार्टी की जिंदगी का अहम जलसा है।  उसके बाद उन्होंने भाषण दिया जिसमें मुसलमानों को एकजुट होकर आगे बढ़ना था। इस तरह जिन्ना मुसलमानों के महान नेता बन गए ।सन  1938 व  1939 को जिन्ना को एक जन आधारित पार्टी खड़ी करने की धुन सवार रही। लखनऊ अधिवेशन में लीग  का संकल्प था - पूरी तरह स्वतंत्र भारत की स्थापना के लिए ही लीग काम करेगी , जो आजाद लोकतांत्रिक राज्यों का ऐसा महासंघ होगा जिसमें मुसलमानों व अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा की जाएगी। कांग्रेस पार्टी के गीत वंदे मातरम की आलोचना करते हुए लीग का कहना था यह गीत अपनी भावना में न केवल इस्लाम विरोधी और मूर्ति पूजक है।  बल्कि भारत में सच्चे राष्ट्रवाद के विकास के विरुद्ध भी हैं। हिंदी के स्थान पर हम उर्दू को भारत की सार्वभौमिक भाषा बनाने की भरपूर कोशिश करेंगे । साथ ही लीग ने सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, सुधार का भी संकल्प किया। दिसंबर सन 1937 ईस्वी में जिन्ना को कोलकाता जा कर   ऑल इंडिया मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन का उद्घाटन करना था, इसलिए उन्होंने लीग की काउंसिल बैठक वही करने का फैसला किया। मुस्लिम छात्रों का यह महासंग लखनऊ मुस्लिम स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, ऑल मुस्लिम स्टूडेंट लीग  से बना था।  फेडरेशन के संविधान में उनके उद्देश्यों में यह बातें शामिल की गई कि मुसलमान विद्यार्थियों में राजनीतिक चेतना पैदा करना और देश की आजादी के लिए की जा रही जद्दोजहद में उचित भागीदारी के लिए उन्हें तैयार करना, मुसलमानों की सामाजिक आर्थिक बेहतरी के लिए काम करना, इस्लाम धर्म और उसे सुदृढ़ करने के लिए इस्लाम विरोधी शक्तियों का सामना करने के लिए इस्लामी संस्कृति व उसके अध्ययन को लोकप्रिय बनाना । सन 1938 में जनवरी माह में मुंबई आने के कुछ दिन बाद जिन्ना अलीगढ़ गए।वहा  छात्रों ने उनका शाही स्वागत किया।  विश्वविद्यालय के परिसर में जिन्ना ने अत्यंत जोशीले लहजे में भाषण दिया, अपने भाषण में मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार के अतिरिक्त  भारत सरकार का गुलाम बताया।  अपने भाषण में जिन्ना ने मुसलमानों को ब्रिटिश सरकार के अतिरिक्त हिंदू सरकार का गुलाम बताया । जिन्ना भारत में सभी मुसलमानों को अधिकार पूर्वक नुमाइंदगी करने वाले एकमात्र राजनीतिक संगठन के रूप में लीग को मान्यता दिलाना चाहते थे। साथ ही उनकी इच्छा भी थी कि गांधी सभी हिंदुओं के नेता के रूप में सामने आए । कांग्रेस को इन दोनों में से कोई बात पसंद नहीं थी जिन्ना किसी भी हालत में कांग्रेस से समझौता करना नहीं चाहते थे । क्योंकि इस तरह भले ही जिन्ना को मुंबई में दूसरी प्रांतीय सरकारों में कुछ सीटों का फायदा तो हो सकता था मगर पाकिस्तान उनके हाथ से निकल जाता। इधर जिन्ना अपनी बीमारी को लेकर फिक्र मंद थे उनके फेफड़ों में खराबी की सूचना फैल जाती तो उनकी पूरी योजना पर पानी फिर सकता था।   इस कारण से उन्होंने अपनी बीमारी को छिपाए रखना मुनासिब समझा।सन 1938 ईस्वी को अप्रैल माह में कोलकाता की फ्लड लाईटो की रोशनी में नहाए हुए एम्फी थिएटर में कहा था कांग्रेस मुख्य रूप से एक हिंदू संगठन है । मुसलमान कई बार स्पष्ट रूप से  कह  चुके हैं कि धर्म, संस्कृति ,भाषा ,विवाद कानून आदि के अतिरिक्त भी एक प्रश्न है। जो उनके लिए जिंदगी और मौत का सवाल बन चुका था। उनका भविष्य नियति इस बात पर निर्भर है कि उन्हें उनके राजनीतिक अधिकार और राष्ट्रीय जीवन में देश में प्रशासन में उनकी जायदाद में से हिस्सेदारी मिलती है या नहीं ,वह इस बात के लिए आखिरी सांस तक लड़ते रहेंगे ।हिंदू राज स्थापित करने का कोई भी सपना और विचार कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। मुसलमानों पर कोई हावी नहीं हो सकता।  और जब तक उस में जरा भी दम बाकी है हथियार नहीं डालेंगे 
 मुस्लिम लीग में जिन्ना ने कांग्रेस की हुकूमत   वाले प्रांतों के मुसलमानों का समर्थन पाने के लिए उनकी लिखित व मौखिक शिकायतें जमा करनी प्रारंभ कर दी।  उन्हीं दिनों गांधी जी ने एक तार भेजकर जिन्ना को एक बैठक करने का आग्रह किया। उस बैठक में अबुल कलाम भी आते इसलिए जिन्ना ने गैर लीगी  मुसलमान के साथ कोई भी बात करने से इंकार कर दिया। तब गांधी जी अकेले 28 अप्रैल सन 1938 ईस्वी में मुंबई स्थित जिन्ना के निवास स्थान पर गए। दोनों के बीच हुई 3 घंटे की बातचीत का कोई हल नहीं निकला। उसके बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस ने भी जिन्ना से बातचीत की, उसका भी कोई हल नहीं निकला। 
कांग्रेस और लीग के बीच बढ़ती मतभेद की खाई सार्वजनिक रूप से स्पष्ट हो गई। जिन्ना ने लीग की कार्य समिति गठित कर जुलाई सन 1938 ईस्वी में इसकी बैठक की।  लीग को कार्य समिति को भी कांग्रेसी या बिर्टिश  लेबर पार्टी की तरह छाया मंत्रिपरिषद का रूप मिल गया था। जिन्नाह केंद्रीय विधानसभा के अधिवेशन के लिए अगस्त माह में शिमला पहुंचे। वहां 16 अगस्त 1938 ई0 मंगलवार की शाम को मुंबई में फिर बंगाल के गवर्नर कार्यकारी वायसराय लॉर्ड ब्रेबोर्न ने जिन्ना व सिकंदर हयात  से बात की ।
 मुसलमान भारत के नेताओं के साथ हुई इस शिखर वार्ता ने 1935 ईस्वी के गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट के केंद्रीय प्रावधान यानी स्वायत्त ब्रिटिश प्रांतों व देसी रियासतों का महासंघ  बनाने के प्रावधान की किस्मत तय कर दी । जिन्ना की मदद से सरकार का अपना कानून पारित करने के लिए पर्याप्त वोट मिल गए। सबसे अधिक अहम बात यह हुई कि युद्ध की पूर्व संध्या पर जिन्ना द्वारा की गई यह तरफदारी अंग्रेजों को भारत में अगले 10 साल टिके रहने में मददगार सिद्ध हुई। कांग्रेस के सभी नेता यहां तक कि गांधीजी भी ब्रिटेन के पक्ष में नहीं थे और जिन्ना को अंग्रेजों की तरफ सहायता के लिए हाथ बढ़ाने से भी नहीं रोक सकते थे।
 सन 1938 ईस्वी को 8 अक्टूबर के दिन मुस्लिम लीग व  नेताओं को कराची के जिला बोर्ड ने औपचारिक स्वागत किया । सर सिकंदर हयात ने लीग का हरा झंडा लहराया, जिस पर रूपहला चांद तारा बना हुआ था। उसके बाद चांदी की एक तश्तरी में उर्दू में लिखे एक अभिनंदन पत्र के साथ जिन्ना को कराची शहर की कुंजी भेंट की गई । जिन्ना ने बहुगुटीय मुस्लिम विधान सभा के तमाम सदस्यों को एक जुटकर मुस्लिम लीग के संरक्षण में ले लिया। किंतु उनमें से एक अल्लाह बख्श,(सिन्ध की यूनाइटेड पार्टी के मुख्यमंत्री) कांग्रेस में जा मिले । सन 1943 में अल्लाह बख्श की हत्या कर दी गई पर यह हत्यारा कभी नहीं पकड़ा गया।
 10 दिसंबर सन 1948 के दिन दिल्ली के मुसलमान दैनिक अल अमान के संपादक मौलाना मजहरूदीन अहमद ने अपने अखबार में प्रस्ताव किया कि एक महान नेता के रूप में जिन्ना को मान्यता देने के लिए सभी मुसलमान उन्हें कायदे आजम कहकर पुकारे। उसी माह के सालाना अधिवेशन के समय पटना सिटी रेलवे स्टेशन पर लोगों की भीड़ ने पहली बार सार्वजनिक रूप से ऊंची आवाज में कायदे आजम के संबोधन से जिन्ना का अभिनंदन किया। सन् 1938 ईस्वी 26 दिसंबर को रात के समय जिन्ना ने भाषण में गांधी जी पर कांग्रेस को बर्बाद कर देने का आरोप लगाया। गांधी जी पर इतना निंदात्मक सार्वजनिक हमला  जिन्ना ने पहली बार किया था इसके अलावा जिन्ना ने मुसलमानों के एकजुट रहने पर जोर दिया। पटना में मुस्लिम लीग ने जिन्ना की बहन फ़ातिमा जिन्नाह के नेत्रत्व में मुसलमान औरतों की एक उप समिति गठित करने का निर्णय किया।
 जिस समय लीग एकजुटता की तरफ बढ़ रही थी उस समय कांग्रेस में सत्ता संघर्ष चल रहा था।
 सन 1939 ईस्वी में जनवरी माह में आगाखान के आग्रह पर गांधीजी लीग से समझौता बातचीत करने को तैयार थे। किंतु जिन्ना कांग्रेस के कट्टर विरोधी थे। उनकी नजरों में कांग्रेसी हिंदुओं की संरक्षक थी। इधर पंजाब नेता सर सिकंदर ने लार्डलिनयगो से कहा का जिन्ना और उनके दोस्त कुछ भी कहें पंजाब और बंगाल युद्ध प्रयास में सरकार का पूरा साथ दें।" 
 जब जिन्ना को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा
" सर सिकंदर अकेले ही सरकार का मकसद पूरा नहीं कर सकते हैं।  मेरे पास अपने साथियों को दिखाने के लिए कुछ सकारात्मक होना चाहिए ताकि युद्ध प्रयासों के लिए मुसलमानों का समर्थन जुटाने में मदद मिल सके। जिन्ना ने लिनलिथगो  से पूछा कि आप कांग्रेस की बर्खास्तगी चाहते हैं? 
 हां उन्हें एकदम बर्खास्त कर देना चाहिए ,तभी उन्हें अक्ल आएगी उनकी तरफ से आप को समर्थन कभी नहीं मिलेगा जिन्ना बोले।
  सन1939 ईसवी में 4 सितंबर को वायसराय से बातचीत करते जिन्ना ने कहा मेरा यकीन के मुताबिक भारत समस्या का एकमात्र राजनीति हल  विभाजन में ही निहित है।
 इससे पूर्व खिलाफत आंदोलन के दौरान जमायत का गठन हुआ चुनाव में जमायत के संयुक्त प्रांत में मुस्लिम कॉन्फ्रेंस पार्टी का विलय करके मुस्लिम यूनिटी बोर्ड के रूप में चुनाव लड़ा। इसके मंत्री खलीकुलज्जमा और उनके बोर्ड के सदस्य फरवरी सन 1937 ईस्वी में दिल्ली में जिन्ना से मिले ।जिन्ना ने सिर्फ एक मांग रखी ,यूनिटी बोर्ड के सभी उम्मीदवार मुस्लिम लीग के नाम पर चुनाव लड़े । जिन्ना का राजनीतिक दांव साल के अंत में काफी लाभदायक सिद्ध हुआ और पूरे भारत में लीग ने कुल 109 सीटें प्राप्त की । हालांकि कांग्रेस ने 716 सीटें प्राप्त की लेकिन उसमें मुसलमान उम्मीदवार केवल 26 थे। कांग्रेस का यह कमजोर पहलू था।  सन 1937 ईस्वी के चुनाव में नेहरू ने मुस्लिम लीग तथा सांप्रदायिक समस्या को गंभीरता से ना लेने की गलती कर दी ।
मुस्लिम लीग संयुक्त प्रांत की विधायिका में अलग गुट की तरह सक्रिय रहना चाहती थी, किंतु कांग्रेसी इसके लिए राजी नहीं थी। कांग्रेस में लीग को सिर्फ मुसलमानों का गुट बताकर पूछा मुस्लिम लीग का लक्ष्य क्या है ? 
जिन्ना की जिंदगी का यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मार्च माह में नेहरू ने कांग्रेस की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली में राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाया । इसमें तय किया जाना था कि अप्रैल सन 1937 ईस्वी को नया संविधान लागू होने के पश्चात कांग्रेस के जीते हुए उम्मीदवारों को प्रांतीय सरकारों में हिस्सा लेना है अथवा नहीं।
 नेहरू कांग्रेस कार्य समिति को सदस्यों का गांधी जी के कहने पर संविधान को आजमाने का फैसला कर लिया गया। किंतु सम्मेलन में मुस्लिम लीग अथवा किसी भी गैर कांग्रेस पार्टी के विजयी उम्मीदवार को सरकार बनाने में शामिल करने से इंकार कर दिया। इस बात की खलीकुज्जमा को आशा थी कि संयुक्त प्रांत का शासन चलाने के लिए कांग्रेसी गठजोड़ सरकार बनेगी जिसमें वह खुद भी शामिल होंगे। किंतु ऐसा नहीं हुआ । कांग्रेस कार्यसमिति में मौलाना अबुल कलाम आजाद अकेले मुसलमान सदस्य थे। उन्होंने सन 1936 ईस्वी की मई माह के मध्य में जमात के उलेमाओं को अपनी तरफ मिला लिया।
 इस प्रकार अबुल कलाम आजाद नेहरू की कृतज्ञता व  विश्वासपात्र  बनते चले गए। आजाद की राजनीतिक गद्दारी ने उन्हें जिन्ना की नजरों में गिरा दिया। जिन्ना ने कहा यह तो पीठ में छुरा भोंकना है ।
खलीकुज्जमा को भी  अबुल कलाम ने कॉन्ग्रेस में  मिलाने  की पूरी कोशिश की मगर सफल नहीं हुए।



 कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के अतीत के बारे में

पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के पिता हिंदू परिवार में पैदा हुए थे. एक नाराजगी के चलते उन्होंने अपना धर्म बदल लिया. वो मुस्लिम बन गए. ताजिंदगी न केवल इसी धर्म के साथ रहे बल्कि उनके बच्चों ने इसी धर्म का पालन किया. बाद में तो मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के आधार पर पाकिस्तान ही बनवा डाला.

जिन्ना का परिवार मुख्य तौर पर गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था. गांधीजी और जिन्ना दोनों की जड़ें इसी जगह से ताल्लुक रखती हैं. उनका ग्रेंडफादर का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था. वो हिंदू थे. वो काठियावाड़ के गांव पनेली के रहने वाले थे. प्रेमजी भाई ने मछली के कारोबार से बहुत पैसा कमाया. वो ऐसे व्यापारी थे, जिनका कारोबार विदेशों में भी था. लेकिन उनके लोहना जाति से ताल्लुक रखने वालों को उनका ये बिजनेस नापसंद था. लोहना कट्टर तौर शाकाहारी थे और धार्मिक तौर पर मांसाहार से सख्त परहेज ही नहीं करते थे बल्कि उससे दूर रहते थे. लोहाना मूल तौर पर वैश्य होते हैं, जो गुजरात, सिंध और कच्छ में होते हैं. कुछ लोहाना राजपूत जाति से भी ताल्लुक रखते हैं।

लिहाजा जब प्रेमजी भाई ने मछली का कारोबार शुरू किया और वो इससे पैसा कमाने लगे तो उनके ही जाति से इसका विरोध होना शुरू हो गया. उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने इस बिजनेस से हाथ नहीं खींचे तो उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. प्रेमजी ने बिजनेस जारी रखने के साथ जाति समुदाय में लौटने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी. उनका बहिष्कार जारी रहा. अकबर एस अहमद की किताब जिन्ना, पाकिस्तान एंड इस्लामिक आइडेंटीटी में विस्तार से उनकी जड़ों की जानकारी दी गई है.जिन्ना के पिता ने  जिद में  उठाया यह कदम

इस बहिष्कार के बाद भी प्रेमजी तो लगातार हिंदू बने रहे लेकिन उनके बेटे पुंजालाल ठक्कर को पिता और परिवार का बहिष्कार इतना अपमानजनक लगा कि उन्होंने गुस्से में पत्नी के साथ तक तक हो चुके अपने चारों बेटों का धर्म ही बदल डाला. वो मुस्लिम बन गए. हालांकि प्रेमजी के बाकी बेटे हिंदू धर्म में ही रहे. इसके बाद जिन्ना के पिता पुंजालाल के रास्ते अपने भाइयों और रिश्तेदारों तक से अलग हो गए. वो काठियावाड़ से कराची चले गए. वहां उनका बिजनेस और फला-फूला. वो इतने समृद्ध व्यापारी बन गए कि उनकी कंपनी का आफिस लंदन तक में खुल गया. कहा जाता है कि जिन्ना के बहुत से रिश्तेदार अब भी हिंदू हैं और गुजरात में रहते हैं

जिन्ना की मातृभाषा गुजराती थी, बाद में उन्होंने कच्छी, सिन्घी और अंग्रेजी भाषा सीखी. काठियावाड़ से मुस्लिम बहुल सिन्ध में बसने के बाद जिन्ना और उनके भाई बहनों का मुस्लिम नामकरण हुआ. जिन्ना की तालीम अलग-अलग स्कूलों में हुई थी. शुरू-शुरू में वे कराची के सिन्ध मदरसा-ऊल-इस्लाम में पढ़े. कुछ समय के लिए गोकुलदास तेज प्राथमिक विद्यालय, बम्बई में भी पढ़े, फिर क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल कराची चले गए. अन्ततोगत्वा उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ही मैट्रिक पास किया.

मैट्रिक पास करने के तुरन्त बाद ग्राह्म शिपिंग एण्ड ट्रेडिंग कम्पनी में उन्हें अप्रैंटिस के रूप में काम करने के लिए बुलावा आया. इंग्लैंड जाने से पहले उन्होंने मां के कहने पर शादी भी कर ली लेकिन वह शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली. उनके इंग्लैंड जाने के बाद मां चल बसीं. इंग्लैंड में उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए अप्रैंटिस छोड़ दी. उन्नीस साल की छोटी उम्र में वे वकील बन गए. इसके साथ सियासत में भी उनकी रुचि पैदा हुई. वे दादाभाई नौरोजी और फिरोजशाह मेहता के प्रशंसक बन गए. ब्रिटिश संसद में दादाभाई नौरोजी के प्रवेश के लिए उन्होंने छात्रों के साथ प्रचार भी किया. तब तक उन्होंने हिंदुस्तानियों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ संवैधानिक नजरिया अपना लिया था। इसके बाद जिन्ना के परिवार के सभी लोग न केवल मुस्लिम हो गए बल्कि इसी धर्म में अपनी पहचान बनाई. हालांकि पिता-मां ने अपने बच्चों की परवरिश खुले धार्मिक माहौल में की. जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों का प्रभाव था. इसलिए जिन्ना शुरुआत में धार्मिक तौर पर काफी ओपन और उदारवादी थे. वो लंबे समय तक लंदन में रहे. मुस्लिम लीग में आने से पहले उनके जीने का अंदाज मुस्लिम धर्म से एकदम अलग था. शुरुआती दौर में वो खुद की पहचान मुस्लिम बताए जाने से भी परहेज करते थे. लेकिन सियासत उन्हें न केवल उन्हें उस मुस्लिम लीग की ओर ले गई, जिसके एक जमाने में वो खुद कट्टर आलोचक थे. बाद में वो धार्मिक आधार पर ही पाकिस्तान के ऐसे पैरोकार बने कि देश के दो टुकड़े ही करा डाले।  

 प्रस्तुति एस ए बेताब (संपादक : बेताब समाचार एक्सप्रेस)

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